________________ (240) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध वात्स्यायनादिक, धर्मशास्त्र याने कि सर्व पुराण मीमांसादिक, ज्योतिषशास्त्र सो चूडामणि प्रमुख, वैद्यकशास्त्र, कालज्ञानादिक ये सब शास्त्र मेरे लिए अनजान नहीं है। फिर यह ऐन्द्रजालिक क्या मुझे जीत सकता है? इसलिए अब मैं वहाँ जा कर सब देव-दानव-मानव के देखते उसे हरा कर उसका सर्वज्ञता का अभिमान नष्ट करूँ, ऐसा मन में अभिमान कर के पाँच सौ छात्रों को साथ ले कर- जैसे मानो इन्द्र ही उसे खींच कर ले जाता हो, वह इसलिए कि भगवान की देशना प्रथम खाली गयी थी, इस कारण से भगवान एक रात में बारह योजन चल कर यहाँ आये। इससे इन्द्र महाराज ने सोचा कि इन्हें शिष्य की प्राप्ति हो तो अच्छा हो, इसलिए मानो- इन्द्र से प्रेरित इन्द्रभूति समवसरण की तरफ जा रहा था। कवि ऐसी कल्पना करता है, अन्यथा तो ऐसा ही होने वाला है। पाँच सौ छात्रों से घिरा हुआ इन्द्रभूति वाद करने की इच्छा से समवसरण की तरफ चला। उस समय पाँच सौ छात्र इन्द्रभूति की बिरुदावली बोल रहे थे। वह इस प्रकार कि- सरस्वती-कंठाभरण, वादिविजयलक्ष्मीशरण, ज्ञात-सर्वपुराण, वादिकदली-कृपाण, पंडितश्रेणी-शिरोमणि, कुमतांधकार-नभोमणि, जितवादिवृन्द, वादिगरुड-गोविन्द, वादिघटमुद्गर, वादिघूक- भास्कर, वादिसमुद्र-अगस्ति, वादिवृक्ष-हस्ति, वादिमुख- भंजन, सकलभूपालरंजन, षट्भाषावलीमूल, परवादिमस्तकशूल, वादिगोधूमघरट्ट, मर्दित वादिमरट्ट, वादिकंदकुदाल, वादिवृंद-भूपाल, वादिगजसिंह, वादिशिरलीह, वादिवेश्याभुजंग, शब्दलहरीगंगातरंग, सरस्वतीभंडार, चतुर्दशविद्या-अलंकार, वादिहृदयशाल, वादियुद्धमाल, बहुराजसमाज-मुकुट, बहुबुद्धिविकट, ज्ञानरत्नाकर, शब्ददिवाकर, महाकवीश्वर, कृतशिष्य-बृहस्पति, निर्जितभार्गवमति, कौजंगम-सरस्वती, प्रत्यक्षभारती, जितानेकवाद, सरस्वतीलब्धप्रसाद इत्यादिक अनेक प्रकार की बिरुदावली छात्र बोल रहे थे और इन्द्रभूति शान से चल रहा था। __ वह रास्ते में पुनः विचार करने लगा कि अरे देखो तो सही, इस मूर्ख ने यह क्या किया? इसने सर्वज्ञता के आटोप से मुझे नाहक क्रोध चढ़ाया।