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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (219) देवांगनाओं के साथ मेरुपर्वत की चूलिका पर जा कर रहा। ऐसा कहा जाता है कि उसका आयुष्य एक सागरोपम का था और वह अभव्य जीव की जाति का था। इस तरह दसवें वर्ष में भगवान को बहुत उपसर्ग हुए। फिर छह मासी तप का पारणा भगवान ने वज्रगाँव जा कर किसी गोपालक के घर खीर के भोजन से किया। (कई प्रतों में लिखा है कि गोकुल में वत्सपाली नामक वृद्ध स्त्री ने परमान्न से पारणा कराया।) वहाँ पाँच दिव्य प्रकट हुए। फिर चौसठ इन्द्रों तथा देवों ने भगवान के पास आ कर उन्हें सुखशाता पूछी। श्रावस्ती नगरी में शकेन्द्र ने यक्षप्रतिमा में प्रवेश कर के प्रभु को वन्दन किया। यह देख कर लोगों ने भगवान की बड़ी महिमा की। जीर्णसेठ और चन्दनबाला का अधिकार ग्यारहवाँ चौमासा भगवान ने विशाला नगरी में किया।।११।। वहाँ जीर्ण सेठ ने भावना भायी कि हे भगवन् ! भात-पानी का लाभ देना। इस तरह चार महीने तक भावना भायी, तो भी मिथ्यात्वी पूरण सेठ ने दासी के हाथ से उड़द बाकुले दिलवाये। उन्हें ग्रहण कर भगवान ने उसके घर पारणा किया। वहाँ पाँच दिव्य प्रकट हुए। तब सब लोग पूरण सेठ को धन्य धन्य कहने लगे। उस समय जीर्ण सेठ को लगा कि मैं भाग्यहीन हूँ। इसलिए मुझे ऐसा योग कैसे मिले? इस तरह वह पश्चात्ताप करता रहा। ... कुछ दिन बाद विशाला में केवली भगवान पधारे। उस समय राजाप्रमुख ने पूछा कि मेरे नगर में भाग्यवान कौन है? तब केवली भगवान ने कहा कि जीर्ण सेठ भाग्यवान है। राजा ने पूछा कि भगवान को दान तो पूरण सेठ ने दिया है? इस पर केवली ने कहा कि उसने भावरहित दान दिया है, इसलिए उसे द्रव्य से लाभ हुआ है और जीर्ण सेठ ने भाव से दान दिया है, इसलिए उसने बारहवें देवलोक का आयुष्य बाँधा है। . भगवान वहाँ से विहार कर सुसुमारपुर गये और वहाँ प्रतिमा धारण कर काउस्सग्ग में रहे। उस समय चमरेन्द्र का सौधर्म देवलोक में गमन
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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