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________________ (218) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध तुम्हें चाहिये सो वर माँगो। यदि स्वर्ग माँगो, तो स्वर्ग दे दूँ। ऐसा कहा तो भी भगवान किंचित् मात्र भी नहीं डिगे- चलायमान नहीं हुए। इस प्रकार महाभयंकर बीस उपसर्ग संगम ने एक रात में किये। ... फिर जब भगवान गोचरी जाते, तब वह उस घर का आहार अशुद्ध कर देता। उसे भगवान के लिए अकल्पनीय बना देता तथा गाँव में चोरी कर के माल भगवान के पास रख देता। इससे लोग भगवान को मारते। वह भगवान का शिष्य बन कर गाँव में लोगों के छिद्रान्वेषण के लिए जाता। जब लोग उससे पूछते कि तू यहाँ इधर-उधर क्यों देखता है? तब वह कहता कि मेरा गुरु रात को चोरी करने आयेगा, इसलिए पहले से ही देख रखता हूँ। यह सुन कर लोग जा कर भगवान को मारते। ऐसा उपसर्ग देख कर भगवान ने अभिग्रह किया कि जब तक मुझे यह उपसर्ग होता रहेगा, तब तक मैं आहार-पानी नहीं लूँगा। संगम कभी कभी ऐसा कर दिखाता कि जिससे लोग यह मान लें कि गाँव की कतिपय स्त्रियाँ भगवान से संबंध रखती हैं। फिर भी भगवान एकान्त स्थान में रहे। . - इस प्रकार उसने छह महीने तक ऐसे उपसर्ग किये, तो भी इन्द्र महाराज ने उसे उपसर्ग करने से नहीं रोका। उन्होंने सोचा कि यदि मैं इसे रोकूँगा, तो यह कहेगा कि मैं तो भगवान को चलायमान कर देता, पर क्या करूँ? तुमने मुझे रोक दिया, इसलिए मैं लाचार हुआ। ऐसा अपवाद टालने के लिए इन्द्र ने उसे कुछ भी नहीं कहा। तो भी जब तक उसने उपद्रव किया, तब तक इन्द्र ने सुख से साँस नहीं ली। वे मन में बहुत उदास रहे। अन्य भी सब देव-देवियाँ आदि शोक में निस्तेज हो कर बैठे रहे। ऐसा करते छह महीने के अन्त में संगम देव स्वयं हार कर बोला कि हे आर्य ! आप सुख से गोचरी कीजिये। मैं अब बिल्कल उपसर्ग नहीं करूँगा। तब भगवान ने कहा कि मैं मेरी इच्छा से गोचरी जाऊँगा। किसी के कहने से नहीं जाऊँगा। __ अन्त में हार कर संगम स्वर्ग में गया। इन्द्र महाराज ने उसका मुख भी नहीं देखा। मार-पीट कर उसे स्वर्ग से भगा दिया। फिर वह अपनी
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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