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________________ (216) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध प्रभु को संगमदेव का उपसर्ग दढभूमि बहु मिच्छा, पेढालुज्जाणमागओ भयवं। पोलास चेइयंमि, ठि एगरायं महापडिम।।१।। सक्को य देवराया, सभागओ भणइ हरिसीउ वयणं। तिन्नि वि लोग समत्था, जिणवीरं न मणं चालेउ।।२।। सामाणिय संगमओ, देवो सक्कस्स सो अमरिसेण। अह आगओ तुरंतो, मिच्छद्दिट्ठि पडिनिविट्ठो य।।३।। चौमासा पूरा होने के बाद भगवान दृढ़भूमि में जहाँ बहुत म्लेच्छ रहते थे, उस म्लेच्छ देश में गये। वहाँ भगवान को कुत्तेप्रमुख प्राणियों ने काटा। ऐसे अन्य भी अनेक प्रकार के कठिन उपसर्ग हुए। वे सब उन्होंने सहन किये। एक दिन भगवान पेढाल गाँव के एक उद्यान में पोलास नामक देवचैत्य में अट्ठम तप सहित एक रात्रि महाप्रतिमा धारण कर के रहे। उस समय देवराज शक्रेन्द्र ने अपनी सभा में भगवान के धैर्य की प्रशंसा करते हुए कहा कि यदि तीनों लोक एक हो जायें, तो भी श्री वीरप्रभु को डिगाने में समर्थ नहीं हो सकते। भगवान का सत्त्व ऐसा है। इन्द्र महाराज का यह वचन सब देवों ने सत्य माना, पर संगम नामक एक सामानिक देव जो अभव्य जाति का और मिथ्यादृष्टि था, उसने अमर्षपूर्वक विचार किया कि मनुष्य को डिगाना-चलायमान करना कोई बड़ी बात नहीं है। यह सोच कर उसने इन्द्र महाराज से कहा कि मैं क्षणभर में उसे डिगा कर आता हूँ। इतना कह कर इन्द्र के वचन न मानते हुए भगवान को डिगाने की प्रतिज्ञा कर वह तुरन्त उनके पास गया। वहाँ जा कर एक रात में उसने बीस महाउपसर्ग किये। सबसे पहले उसने धूल उड़ा कर और धूल की वर्षा कर के भगवान का श्वासोच्छ्वास अवरुद्ध किया। फिर वज्रमुखी कीड़ियाँ उत्पन्न कर भगवान के शरीर को कटवाया और उसे छलनी जैसा बना दिया। इसके बाद वज्रमुखी डाँस-मच्छर बना कर प्रभु के शरीर को कटवाया। फिर
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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