________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (211) और प्रगल्भा इन दो साध्वियों ने जो परिव्राजकिनी बन गयी थीं, उन्हें छुड़ाया। यहाँ गोशालक ने जाना कि इनके पीछे घूमने से बहुत दुःख सहने पड़ते हैं, इसलिए वह भगवान से अलग विचरने लगा। मार्ग में उसे पाँच सौ चोर मिले। वे मामा मामा कह कर उसके कंधे पर चढ़ कर उसे आगे-पीछे घुमाने लगे। इससे वह बड़ा दुःखी हुआ। फिर वह जहाँ भी गया, वहाँ उसने तूफान किया। इससे लोगों ने उसे मारा-पीटा। तब गोशालक ने सोचा कि भगवान के साथ रहना ही ठीक है। फिर वह भगवान को ढूँढने लगा। भगवान विशाला नगरी पहुँचे। वहाँ लुहार की कार्यशाला में काउस्सग्ग में रहे। वह लुहार छह महीने से बीमार था। उस दिन वह ठीक हुआ था, इसलिए लोहा घड़ने के उपकरण ले कर वहाँ गया। भगवान को मुंडित देख कर अपमंगल हुआ जान कर वह उन्हें घन लेकर मारने दौड़ा। इतने में इन्द्र ने अवधिज्ञान से जान कर वहाँ जा कर लुहार को रोका। (कहीं कहीं ऐसा भी लिखा है कि इन्द्र महाराज ने उस लुहार को उसी घन से मार डाला)। फिर भगवान ग्रामाक सन्निवेश गये। वहाँ वन में बिभेलक यक्ष ने प्रभु की महिमा की। वहाँ से शालिशीर्ष गाँव के बाहर जा कर भगवान काउस्सग्ग में रहे। उस समय माघ मास की ऋतु होने के कारण बहुत ठंड पड़ रही थी। यहाँ भगवान ने शीत उपसर्ग सहन किया। प्रभु को कटपूतना देवी का उपसर्ग त्रिपृष्ठ वासुदेव के भव में भगवान की एक अपमानिती स्त्री थी। वह स्त्री अनेक भवभ्रमण कर इस समय कटपूतना नामक व्यन्तरी हुई थी। भगवान को देख कर उसे द्वेष उत्पन्न हुआ। उसने तापसी का रूप बना कर अपनी जटा में पानी भर कर भगवान के शरीर पर छाँटा। उसने बड़ा भारी शीत उपसर्ग किया। जाड़े की ऋतु तो थी ही। उसमें व्यन्तरी ने पुनः मेघवृष्टि की। बहुत ठंडी हवा चलायी। ऐसे बड़े भारी विकट उपसर्ग किये। ये सब