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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (195) मेरा यह दारिद्र्यरूप बांधव मेरा सहायी मेरे साथ जन्मा, मेरे साथ बड़ा हुआ और विवाह के समय भी मुझसे पहले इसने मेरी स्त्री के साथ विवाह किया। अधिक क्या कहूँ? यह दारिद्र्य मेरे शरीर की छाया की तरह तथा अपनी बाँधी हुई कर्मप्रकृति की तरह मेरा पीछा नहीं छोड़ता। __धन कमाने के लिए परदेश जाते समय मैंने इसे बहुत रोका, तो भी यह मेरे साथ ही चला। मैंने गंगा में स्नान किया, तब इसने भी मेरे साथ ही स्नान किया। मैंने यमुना, नर्मदा से संबंधित तीर्थयात्रा की, तब इसने भी मेरे साथ ही तीर्थयात्रा की। इसलिए इसके प्रभाव से परदेश में घर घर लोगों से भिक्षा माँगते समय मैं तो सबको देखता, पर इस दारिद्र्य-बांधव के प्रभाव से मैं प्रत्यक्ष (प्रकट) होते हुए भी मुझे कोई भी नहीं देखता। जैसा कि कहा है दीसंति जोगसिद्धा, अंजनसिद्धा य केइ दीसंति। दारिद्दजोगसिद्धा, पासे वि ठिया न दीसंति।।१।। और भी कहा है किभो दारिद्र्य ! नमस्तुभ्यं, सिद्धोऽहं तव दर्शनात्। अहं सर्वं प्रपश्यामि, न मां पश्यति कश्चन।।२।। मतलब यह है कि योग साध कर जो सिद्ध हुए हैं, वे भी आँखों से दीखते हैं तथा आँखों में अंजन कर के जो सिद्ध हुए हैं, वे भी किसी प्रयोग से प्रकट नजर आते हैं, परन्तु दारिद्र्यरूप योग से जो सिद्ध हुए हैं, वे लोग यदि पास में खड़े हों, तो भी दिखाई नहीं देते। इसलिए. हे दारिद्र्य ! तुझे नमस्कार हो, क्योंकि मैं तुम्हारे दर्शन से सिद्धपुरुष हो गया हूँ। इससे मैं तो सबको देखता हूँ, पर मुझे कोई भी नहीं देखता। इसलिए हे स्वामिन् ! उस दारिद्र्य-बांधव के प्रसाद से मैं परदेश में बहुत घूमा, मैंने बहुत बड़ा उद्यम किया, अनेक सेठ-साहूकारों की सेवा की, पर मैं तो भाग्यहीन ठहरा। इससे एक फूटी कौड़ी मात्र धन भी मुझे नहीं मिला। घर से जैसा गया था, वैसा ही घर लौटा। इस कारण से मेरे घर में प्रवेश करने के पहले ही उसने मेरे घर में प्रवेश कर लिया। उसके प्रताप से मेरी अनार्यिका स्त्री क्रोध कर के हाथ में मूसल ले कर मेरी ओर मुझे मारने के लिए दौड़ी। तब मुझे लगा कि वह मांगलिक कर के मेरा सत्कार करेगी, पर उसने तो मेरे पास आ कर कठोर और निष्ठुर
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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