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________________ (176) ___ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध का काश्यप गोत्र है। उसके शेषवती तथा यशस्वती ये दो नाम हैं। . ____ भगवान श्री महावीरस्वामी सब कलाओं में निपुण, रूपवान, सर्वगुणसम्पन्न, सरल परिणामी और विनयी थे। वे अच्छी तरह से प्रतिज्ञा निर्वाह करने वाले थे। ज्ञात राजा के प्रसिद्ध पुत्र सिद्धार्थ राजा के कुल में चन्द्रमासमान थे। उनका शरीर सुव्यवस्थित था। उनका वज्रऋषभनाराच संहनन और समचतुरस्र संस्थान था। वे त्रिशलामाता के पुत्र गृहवास में महाकोमल शरीर वाले, पर दीक्षा के पश्चात् परीषह सहनशीलता की अपेक्षा से अतिकठिन शरीर वाले, कांतिवान, ममत्व रहित और दीक्षाभिलाषी थे। वे तीस वर्ष तक गृहस्थावस्था में रहे। प्रभु को माता-पिता का वियोग भगवान जब अट्ठाईस साल के हुए, तब उनके माता-पिता का देवलोकगमन हो गया। उस समय उन्होंने अपने बड़े भाई नन्दीवर्द्धन से दीक्षाग्रहण के लिए आज्ञा माँगी। उन्होंने भाई से कहा कि माता-पिता के जीवित रहने तक घर में रहने की मेरी प्रतिज्ञा थी। वह अब पूर्ण हो गयी है। इसलिए अब मुझे दीक्षा लेने की आज्ञा दो। तब नन्दीवर्द्धन ने कहा कि हे भाई ! तुम जले पर नमक क्यों छिड़कते हो? माता-पिता के वियोग का दुःख मेरे लिए अब भी बना हुआ है। उस पर तुम्हारे वियोगरूप नमक का छिड़काव मुझसे सहा नहीं जायेगा। अभी तो माता-पिता का शोक भी नहीं मिटा है। इसलिए इस समय मैं दीक्षाग्रहण की अनुमति नहीं दे सकता। तब भगवान ने कहा कि माता-पिता, भाई-बहन आदि इस जीव को अनन्त बार मिले हैं। जीव अकेला ही आता है और उन सबको छोड़ कर 1. आवश्यक नियुक्ति में ऐसा लिखा है कि चौथे देवलोक में गये। इसका समाधान करने के लिए कई टीकाकार यह कल्पना करते हैं कि देवों की कुल चार निकायें हैं। इन चार देवनिकायों के आश्रय से चौथी निकाय वैमानिक देवों की है। इसलिए चौथा देवलोक याने चौथी निकाय वैमानिक देवों की जानना। इस चौथी निकाय में बारहवाँ देवलोक आ जाता है। इससे आचारांग में कहे अनुसार बात बराबर मिल जाती है। इस प्रकार वे समाधान करते हैं। फिर तत्त्व केवलीगम्य है।
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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