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________________ (160) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध आजनां ताव्यां एवां गायनां घी, भेंशना घी, पीला वरणनां घी, नाके पीयां घी, मजीठवर्णा घी। हवे पोली पिरसी। ते केहवी छे? तो के आछी पोली, घीमांहे झबोली। फूंकनी मारी फलसी जाय, एकवीश पोलीनो एक कोलीओ थाय। छप्पो मुरकी मोतीचूर, सेव फिणी साकर सरखी। खाजां खुरमा खांड, प्रिया तिहां पिरसे हरखी। केलांतणी कातली, अंबरस मूके बोली। घल घल घीनी नाल, पिरसे पातली पोली।। साल दाल बहु सालणां, गोरस करबे चित्त ठर्यु। ऋषभ कहे ए जमण कयें, बाकी सघलुं ए जो वर्यु।।१।। चोला मरटी तेल, साकविण नित्ये सारे। पिरसे भंडी नार, पेट कहो केणीपरे ठारे।। ऊपर ढीली घेश, छाश पण पिरसे पाणी। सिंधव नहीं लगार, किशुं कहे कर्मनी कांणी। आहार सेर अढीतणो, सेर सवा दोहिलो लहे। . कवि ऋषभ कहे ए जो वयें, भोजन एहने कुण कहे।। 2 / / हवे शाक पिरस्यां तेनां नाम कहे छे- नीली डोडीनां शाक, टिंडसीनां शाक, चीभडानां शाक, कोल्हा, कंकोडां, करमदां, कालिंगडां, केला, कारेला, आरियां, तुरियां, खडपुजां, मोगरी, नींबू, अंबोलीया, वालोल, चोलानी फली, सरगवानी शिंग, सांगरी, काचरी, आमला, केरनां फूल, केरडां, लीलां मरची, लीली पीपर, लीली रायण, खाटां, खारां मोलां, गल्या, तल्या, वघााँ, फगााँ, छमकार्या। वली पिरसी भाजी, ते उपरे सहुको राजी। ते कोण कोण जातनी ते कहे छेसरसवनी भाजी, सूवानी भाजी, मूलानी भाजी, चणानी भाजी, चीलनी भाजी, मेथीनी भाजी, थेगीनी भाजी, अफीण नी भाजी, तांदूलनी भाजी। ___ हवे वडीनां शाक कर्यां तेना नाम कहे छे- दाजवड़ी, डवकावड़ी, चूथरावड़ी, वासवड़ी, घारवड़ी, दहीवड़ी, वोलवड़ी, पापड़वड़ी, मरियाला वड़ी। घणां झोले भीनां। घणां वधार मसालाना चमत्कार। सबडकां देतां अंगुली चाटता, मनमा विशेषे भावता। __ हवे रायतांना नाम कहे छ- खारेकनां रायतां, टोपरांना रायतां, द्राखनां रायतां, बदामप्रमुख मेवानां रायतां।
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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