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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (159) फल्यां महाविशाल एवा सातपुडा खाजां। वली फगफगता फेणा, दूधवर्णा दहीथरा, घृतवर्णी सुंवाली, अमृतजेवी जलेबी, घीना घेवर, पतासा, मोतीचूर, गुंजवडां, एलचीदाणासहित साकरीया चणा, खांड-साकरनां दहीथरां, अनेक भातिनी सुखडी पिरसे। विशुद्ध दले केलव्यां, सारमिश्र खांडथी भेलव्यां, मांहे एलचीना चमत्कार। .. पछी पिरस्या लाडू, जाणे नाना गाडू। कुण कुण तेहना नाम, जमता मन रहे नहीं एक ठाम। वली लाडूना नाम कहे छ- मोतीआ लाडू, दलिया लाडू, सेवैया लाडू, चूरमाना लाडू, तिलना लाडू, तिगडुना लाडू, मगना लाडू, जगरीना लाडू, सिंहकेसरीया लाडू, कीटीना लाडू, तेजाना लाडू, खसमसीयाना लाडू, जांखरीया लाडू, चोंटीया लाडू, अडदीया लाडू, अमृतिया लाडू। दीठां दाढ़ गले, पूरण पुण्याइए मले। भोजन ने अर्थे पिरसे, लक्ष्मी एवा मोदक जात जातनां दीसे। जमतां वाधे मुखनो वान, तेनां हैयडा हीसे। दातारना हाथे परीघल, कृपणना हाथ धूजे। वली बीजा आण्या पकवान, जमतां वाधे मुखनुं वान। कुण कुण जाति, नव नवी भांति। सखरा साँटा, ते माहे नहीं खाटा। बरफीनी जाति, फीणीनी जाति, मरकीनी जाति, दूधपिंडीनी जाति, साकरीया मोतीचूरनी जाति, मसूरनी जाति, जलेबीनी जाति, सक्करपारानी जाति, गोलपापडीनी जाति।। हवे आव्यां वडां गुंदवडां। फीणी सखरा सोट, ते मांहे नहीं खोट। दहीवडां, फेणवडां, मेथीयावडां, कांजीयावडां, सालियावडां। पातली सेव, पिरस्यानी रूडी टेव। ताजो गुंद, तल्यो गुंद। कुंडलाकृत जलेबी, शीरो, लापसी, जिण दीठे दाढा गले, स्वर्गहुंति देवदेवी टलवले। वली मीठो मगद, सारो माल नगद। खांडनुं चूरमुं, साकस्नुं चूरमुं। पछी पिरसी सालि, ते जमीये विशाल। ते कुण कुण भेद, सांभलता उपजे उमेद। सुगंध सालि, सुवर्ण सालि, धवली सालि, राती सालि, नीलीसालि, पीली सालि, महासालि, शुद्ध सालि, कुमुद सालि, मालवी सालि, कलम सालि, कुंकणी सालि, तिलवासी सालि, जीरा सालि, कंद सालि, रायभोग सालि, कुंवारी सालि, चन्द्रायण सालि, निकी सालि, गरुडा सालि। वली साबु चोखा, अखंड चोखा। ने वली खांड्या, सबला छांड्या। हलवा हाथथी सोह्या, नखथकी वीण्या। उत्तम स्त्रीए ओर्या, सुजाण स्त्रीए ओसाव्या। एवा अणीयाला सुगंधी फरहरा, ऊंचा कर पिरस्या। वली. ऊपर दाल पिरसी। तेनां नाम कहे छे- मंडोरनी दाल, मग नी दाल, काबुली चणानी दाल, गुजराती तुवरनी दाल, अड्दनी दाल, जालरनी दाल, मठनी दाल। वर्णे पीली, परिणामे सीली। वली परिघल घृत पिरस्यां। ते केहवां छ? तो के
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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