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________________ (126) . श्री कल्पसूत्र-बालावबोध है। फिर राजा ने उसे अपने पास बुला कर पूछा कि क्या तू विदेशी भट्टाचार्य के साथ वाद करेगा? तब वह बोला कि हाँ महाराज ! मैं वाद करूँगा। इसमें मेरी क्या हानि है? भट्टाचार्य के साथ वाद करना कोई बड़ी बात नहीं है। यदि वह जोरदार होगा, तो भी अटपटे न्याय से मैं उसे जीत [गा। फिर राजा ने आदित्यवार के दिन उस भट्टाचार्य को बुला कर कहा कि मेरे साधारण भट्टों को तो तुमने जीत लिया है, पर अब उन सब पंडितों के आचार्य (गुरु) के साथ यदि तुम वाद करो और उन्हें जीत लो, तो मैं मान लूँगा कि तुम वास्तव में पंडित हो। तब भट्टाचार्य ने कहा कि हे राजन् ! मैं उनके साथ भी वाद करूँगा। आप उन्हें यहाँ बुला लीजिये। तब राजा ने भट्टाचार्य को आसन पर बिठाया और कालिदास, क्रीड़ाचन्द्र, माघप्रमुख भट्टों को पंडितजी को बुलाने के लिए भेजा। वे सब गांगा तेली के पास गये। उसे भट्टाचार्य का वेश पहनाया तथा अलंकार आदि से सजाया। गांगा तेली बड़ा हृष्ट-पुष्ट मदोन्मत्त हाथी जैसा था। उसे पालकी में बिठा कर सब पंडित उसे राजसभा में ले आये। राजा ने उसका आदर-सत्कार किया। सब सभाजनों ने खड़े हो कर सम्मान के साथ उसे सिंहासन पर बिठाया। यह देख कर दक्षिण भट्टाचार्य ने सोचा कि यह पंडित तो हृष्ट-पुष्ट है और मैं दुबला-पतला हूँ। इसके आगे वाद में मैं टिक नहीं सकूँगा। अतः इसके साथ वचन-कलह न कर के इसे सिर्फ तत्त्व पूछना ही उचित होगा। यह सोच कर उसने एक उंगली ऊपर उठायी। तब भोज राजा के भट्ट ने क्रोधित हो कर दो उंगलियाँ ऊँची कर के दिखायीं। यह देख कर दक्षिण भट्टाचार्य चकित रह गया। उसने पाँच उंगलियाँ ऊँची कर के बतायीं। तब गांगा तेली ने मुट्ठी ऊँची कर के बतायी। यह देख कर दक्षिण भट्टाचार्य ने अपने सिर से अंकुश उतार लिया, पेट का पट्टा खोल दिया और समस्त मान का त्याग कर के सब सभाजनों के समक्ष वह भोज राजा के भट्ट के चरणों में गिर पड़ा। फिर वह कहने लगा कि यह बड़े आश्चर्य की बात है कि आज तक मुझे किसी ने नहीं जीता, पर तुमने मुझे जीत लिया है। तुम महापंडित हो। यह देख कर भोज राजा ने विस्मित होकर दक्षिण भट्टाचार्य से पूछा कि तुमने किस प्रकार का वाद किया? तब भट्ट बोला कि महाराज ! आपका यह भट्ट महाज्ञानी है। मैंने इसके साथ समस्या से वाद किया। इस संसार में एक शिव है, ऐसा स्थापन करने के लिए मैंने आपके भट्ट को एक उंगली बतायी। तब आपके भट्ट ने दो उंगलियाँ दिखायीं। इससे मैं समझ गया कि एकमात्र शिव ही नहीं हैं, पर शिव और शक्ति ये दो हैं। फिर मैंने कहा कि इन्द्रियाँ पाँच हैं। इसलिए पाँच
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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