________________ (6) तैयार की, किन्तु पाँच-पचास से अधिक नहीं की जा सकीं। लिपिकों (लेहियों) की कमी थी और एक प्रति 50-60 रुपयों से कम में नहीं पड़ती थी, अतः संकल्प किया गया कि इसे छपाया जाए (पृ. 6) / ___ इस तरह 'कल्पसूत्र' की बालावबोध टीका अस्तित्व में आयी। टीका रोचक है और धार्मिक विवरणों के साथ ही अपने समकालीन लोकजीवन का भी अच्छा चित्रण करती है। इसके द्वारा इस समय के भाषा-रूप, लोकाचार, लोक-चिन्तन इत्यादि का पता लगता है। सब से बड़ी बात यह है कि इसमें भी श्रीमद् राजेन्द्रसरि के क्रान्तिनिष्ठ व्यक्तित्व की झलक मिलती है। वस्तुतः यदि श्रीमद हिन्दी के कोई सन्त कवि होते, तो वे कबीर से कम दर्जे के बागी नहीं होते। कहा जा सकता है कि जो काम कबीर ने एक व्यापक पटल पर किया, करीब-करीब वैसा ही कार्य श्रीमद् ने एक छोटे क्षेत्र में अधिक सूझबूझ के साथ किया। कबीर की क्रान्ति में बिखराव था, किन्तु श्रीमद् की क्रान्ति का एक स्पष्ट लक्ष्य-बिन्दु था। उन्होंने मात्र यति-संस्था को ही नहीं, आम आदमी को भी क्रान्ति के सिंहद्वार पर ला खड़ा किया। मात्र श्रीमद् ही नहीं, उन दिनों के अन्य जैन साधु भी क्रान्ति की प्रभाती गा रहे थे। 'कल्पसूत्र' की बालावबोधटीका के लिखे जाने के दो साल बाद संवत् 1942 में सियाणा में श्रीकीर्तिचन्द्रजी महाराज तथा श्री केशरविजयजी महाराज आये। दोनों ही शुद्ध चारित्र के साधु थे। उन्होंने सियाणा में ही वर्षावास किया। अकस्मात् कोई ऐसा प्रसंग आया कि बागरा-निवासी किसी विवाद को ले कर सियाणा आये। यह एक अच्छा अवसर उपस्थित हुआ। इस समय जैन लोग तो एकत्रित हुए ही,कई अन्य जातियों के बन्धु-बान्धव भी वहाँ उपस्थित हुए। 'कल्पसूत्र' की प्रस्तावना में एक स्थान पर लिखा है : "तेमा वली ते वखतमा विशेष आश्चर्य उत्पन्न करनारी आ वात बनी के ते गामना रहेवासी क्षत्री, चौधरी, घांची, कुंभारादि अनेक प्रकारना अन्य दर्शनीओ तेमां वली यवन लोको अने ते गामना ठाकोर सहित पण साथे मली सम्यक्त्वादि व्रत धारण करवा मंडी गया।" इससे इस तथ्य का पता चलता है कि जैन साधु का जनता-जनार्दन से सीधा सम्पर्क था और उन्हें लोग श्रद्धा-भक्ति से देखते थे। अन्य जातियों के लोगों का एकत्रित होना और वध-निमित्त लाये गये पशुओं को छोड़ना तथा अहिंसा व्रत को धारण करना कुछ ऐसी ही घटनाएँ हैं, जो आज से लगभग नब्बे वर्ष पूर्व घटित हुई थीं। वह जमाना ऐसा था, जब सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से काफी उथल-पुथल थी और लोग घबराये हुए थे। सामाजिक कुरीतियों और धार्मिक ढकोसलों के शिकंजे में लोग काफी संत्रस्त थे। ऐसे समय में ज्ञान का संदेश-वाहक 'कल्पसूत्र' और पर्युषण में उसका वाचन बड़ा