________________ (102) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध से आहत कदंबवृक्ष के फूल के समान उसके रोम उल्लसित हुए। अर्थात् उसके रोम-रोम में हर्ष प्रकट हुआ। फिर उसने अपने देखे हुए सपनों को याद किया कि अनुक्रम से मैंने अमुक-अमुक सपने देखे। इस प्रकार याद कर वह उठी। उठ कर बाजोठ पर पैर रख कर नीचे उतरी। उतर कर न उतावली याने मन में उतावल नहीं है तथा काया से चपलता नहीं है, नहीं धीमी, मार्ग में ठोकर रहित, विलंब रहित, दीवार आदि का सहारा न लेती हुई, राजहंसी सरीखी गति से चलती हुई जहाँ सिद्धार्थ क्षत्रिय राजा की शय्या थी, जहाँ सिद्धार्थ क्षत्रिय सोये हुए थे, वहाँ जा कर सिद्धार्थ क्षत्रिय राजा को मधुर वाणी से जगाने लगी। जो सिद्धार्थ राजा को अतिप्रिय लगे, सिद्धार्थ राजा जैसी वाणी की सदा चाहना करे ऐसी वाणी तथा द्वेष रहित, सब के मन को अच्छी लगने वाली, अतिप्रियता प्रकट करने वाली, स्वरअक्षरों से स्पष्ट, कल्याण करने वाली, वृद्धि करने वाली, निरुपद्रवी अर्थात् उपद्रवरहित, धनलाभ कराने वाली, मंगल करने वाली, श्रीकार अलंकारादि शोभासहित, हृदय में कोमल लगनेवाली, जो वाणी सनने से मन को आनन्द होता है, तथा कोमल, मीठी, रसयुक्त, जिसमें वचन थोड़े और अर्थ बहुत है, ऐसी वाणी से त्रिशलादेवी ने अपने स्वामी को जगाया। सिद्धार्थ राजा के जागने पर त्रिशलारानी सिद्धार्थ राजा की आज्ञा से नाना प्रकार के मणिरत्नों से जड़ित सोने के बाजोठ पर ,पालखी मार कर बैठी। रास्ते की थकान मिटा कर सुखपूर्वक बैठी। बैठ कर सिद्धार्थ राजा से मधुर वाणी से बोली कि हे स्वामिन्! निश्चय ही आज शय्या में कुछ सोते कुछ जागते मैंने गज-वृषभादि चौदह सपने देखे। उन्हें देख कर मैं जाग गयी। उन महान सपनों का फल मेरे लिए क्या होगा? तब सिद्धार्थ राजा ने त्रिशला के मुख से ऐसे स्वप्न सुन कर हर्ष-सन्तोष प्राप्त कर चित्त में आनन्दित हो कर अपनी प्रसन्नता प्रकट की। उसके हृदय में प्रीतिकारक परम सौम्य हर्ष छा गया। मेघ की धारा से आहत कदंबवृक्ष के फल के समान वह उल्लसित हुआ। स्वप्न सुन कर उसने विचार किया। अपने स्वभाव के अनुसार अपने बुद्धिविज्ञान से उन स्वप्नों का अर्थ समझा। अर्थ