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________________ (98) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध की मुखाकृति तथा शरीराकृति है। उस ध्वजा का वस्त्र वायु के झोंकों से थोड़ाथोड़ा चलायमान हो रहा है। इस प्रकार अत्यन्त ऊँचा और लोगों के देखने योग्य ऐसा ध्वज आठवें सपने में त्रिशलादेवी ने देखा। . . . . नौवें स्वप्न में पूर्णकलश देखा। उसका रूप अत्यन्त देदीप्यमान है। वह निर्मल जल से भरा हुआ बहुत सुन्दर है। उसकी शोभा सूर्य मंडल सरीखी जाज्वल्यमान है। उस कलश के पास कमलबाग है याने कि वह कमलों से घिरा हुआ है। वह कलश सब मंगलों को प्राप्त कराने वाला है। वह पूर्णकलश प्रधान रत्नकमल पर रखा हुआ है। वह नयनों को आनन्द देने वाला है। सब दिशाओं में उद्योत करने वाला, पापरहित सर्वशोभा सहित वह सब प्रकार की लक्ष्मी का घर है तथा उस कलश के गले में छहों ऋतुओं के सुगंधित फूलों की माला है। ऐसा रौप्यमय पूर्णकुंभ (कलश) नौवें स्वप्न में त्रिशलारानी ने देखा। दसवें स्वप्न में पद्मसरोवर देखा। उस सरोवर में ऊगते सूर्य से खिले हुए हजार पँखुडी के कमल हैं, उस विकस्वरमान कमल की सुगंध से जिसका जल सुगंधमय हुआ है तथा उन कमलों की प्रभा से जिसका पानी लाल-पीले रंग का दीखता है, जो पद्मसरोवर जल-मत्स्य-कच्छपादिक अनेक जलचर जीवों से भरा हुआ है, जिस पद्मसरोवर में कमलपर पड़े जल के छींटे देख कर ऐसा लगता है कि मानो नीले आँगन में मोती जड़े हैं, ऐसा वह महासरोवर है। उसमें सूर्यविकासी कमल, चन्द्रविकासी कमल, महापद्म (श्वेत) कमल, लालकमल इत्यादि कमलों की शोभा बनी हुई है। इससे वह बहुत रमणीय है। उन कमलों पर प्रसन्न हुए भ्रमर-भ्रमरियाँ आ आ कर गुंजारव कर रहे हैं और कादंबक हंस, चकवा, राजहंस, बगुले, सारस आदि पक्षियों से वह शोभायमान है अर्थात् इन जातियों के पक्षी वहाँ रहते हैं। ऐसा पद्मसरोवर त्रिशलादेवी ने दसवें सपने में देखा। ___ग्यारहवें स्वप्न में क्षीरसमुद्र देखा। वह क्षीरसमुद्र कैसा है? जैसी शोभा चन्द्रमा के किरणों की है, वैसी शोभा उस समुद्र की है। चारों तरफ उस समुद्र का जल बढ़ रहा है। उसमें अधिकाधिक चंचल ऐसी ऊँची-ऊँची
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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