________________ (96) * श्री कल्पसूत्र-बालावबोध वृक्ष होते हैं, मोगरा के फूल, मालती के फूल, जाई के फूल, जूही के फूल, कोल्लज फूल- ये किसी बेल विशेष के फूल हैं, कोज के फूल, कोरंट के फूल, दमन के फूल, नवमालिका के फूल, बकुलवृक्ष के फूल, तिलवृक्ष के फूल, वासंतिका के फूल, पद्मकमल के फूल, उत्पल याने पुंडरीक के फूल, कुंदमचकुंद वृक्ष के फूल, अगस्ति के फूल, आम्रमंजरी आदि अनेक प्रकार के फूलों की सुगंध है जिनमें, तथा उस मनोहर सुगंध से आकर्षित हो कर आये हुए भ्रमर भ्रमरियाँ गुंजारव कर रहे हैं जिनमें, ऐसी वे मालाएँ हैं। तथा इन दोनों मालाओं में सब ऋतुओं के फूल सुगंधित और पाँच वर्ण वाले हैं, परन्तु उनमें सफेद रंग विशेष है। उनमें जहाँ-जहाँ जो-जो फूल सुन्दर दीखता है, वहाँ-वहाँ वह-वह फूल गूंथा हुआ है। ऐसी दो मालाएँ पाँचवें स्वप्न में त्रिशलामाता ने देखीं। छठे स्वप्न में चन्द्रमा देखा। वह चन्द्रमा गाय के दूध के झाग सरीखा उज्ज्वल है। रूपा के कलश सरीखा उज्ज्वल है तथा हृदयवल्लभ और नेत्रवल्लभ है। पूनम के संपूर्ण अंधकार का हरण करने वाला, शुक्लपक्ष में शोभायमान, कुमुदवन का बोधक याने उसे विकसित करने वाला, रात्रि की शोभा करने वाला, भली रीति से उजले काँच की तरह शोभायमान, आकाशरूपी सरोवर का हंस, दोनों पक्षों से पूर्ण, सब ज्योतिषियों का मुखमंडन, अंधकार का बैरी, कन्दर्पबाण को पूर्ण करने वाला, समुद्र के जल को बढ़ाने वाला- क्योंकि जब शुक्लपक्ष में चन्द्रमा ऊगता है, तब समुद्र की लहरें बढ़ती हैं, विरहिणी स्त्री के चन्द्र के उदय से विरह अधिक जागृत होता है, इसलिए अपनी किरणों से विरहिणियों का शोषण करनेवाला, आकाश का तिलक, रोहिणी का हृदयवल्लभ- क्योंकि चन्द्रमा रोहिणी का भरतार है, ऐसी लोगों में कहावत है; परन्तु रोहिणी तो नक्षत्र हैं, सो यह हो नहीं सकता। ऐसा पूनम का चन्द्र त्रिशलादेवी ने छठे सपने में देखा। ___सातवें स्वप्न में सूर्य देखा। वह सूर्य अन्धकार के पटल को भेदने वाला है। उसका वर्ण लाल है। वह अशोकपुष्प सरीखा लाल है, पलाश के फूल सरीखा लाल है। जैसी आधी गूंजा होती है, वैसा लाल है। वह