________________ (89) ... श्री कल्पसूत्र-बालावबोध देवानन्दा ब्राह्मणी सोयी हुई थी, वहाँ गया। वहाँ जा कर भगवान को देख कर उसने प्रणाम किया। फिर देवानंदा ब्राह्मणी के सर्व परिवार को अवस्वापिनी निद्रा दे कर अशुभ पुद्गल दूर कर, शुभ पुद्गल प्रक्षेप कर (मिला कर) 'हे भगवन् ! आज्ञा दीजिये' ऐसा कह कर भगवान को देवप्रभाव से पीडारहित हाथ में ग्रहण कर करसंपुट में ले कर क्षत्रियकुंडग्राम नगर में ज्ञातकुल सिद्धार्थ क्षत्रिय राजा के घर में जहाँ त्रिशला क्षत्रियाणी थी, वहाँ जा कर उसके संब परिवार को अवस्वापिनी निद्रा दे कर अशुभ पुद्गल बाहर निकाल कर शुभ पुद्गलप्रक्षेप कर भगवान को पीडारहित त्रिशलारानी की कोख में रखा। देव ने दसवें द्वार से प्रवेश किया और नाभि से वापस निकला, ऐसा वृद्ध वाक्य है। फिर त्रिशला के गर्भ में जो पुत्री थी, उसे वहाँ से उठा कर देवानन्दा की कोख में गर्भरूप में रख कर देव जिस दिशा से आया था, उसी दिशा में वापस चला गया। वहाँ चंडाचपलादि चार गतियों से अधिक दिव्य देवगति से तिरछे असंख्यात द्वीप समुद्र में लाख योजन परिमाण वाले शरीर जैसे कदम रखते हुए, जहाँ सौधर्म देवलोक में सौधर्मावतंसक विमान है तथा शक्र सिंहासन है और शक्रेन्द्र नामक देवों का राजा है, वहाँ गया और वहाँ जा कर शक्रेन्द्र को आज्ञा वापस सौंप दी। अर्थात् यह कहा कि आपने जो कहा था, वह सब काम. कर आया हूँ। प्रभु का त्रिशला रानी की कोख में अवतरण ___उस काल में उस समय में श्रमण भगवन्त श्री महावीरस्वामी को वर्षाकाल का तीसरा महीना पाँचवाँ पक्ष आश्विन वदि तेरस के दिन बयासीवीं रात बीतने के बाद तिरासीवीं रात के वर्तमान में अपने हित के कारण अथवा भगवान के प्रति अनुकंपा के कारण जहाँ ब्राह्मणकुंडग्राम नगर में ऋषभदत्त ब्राह्मण की भार्या देवानन्दा ब्राह्मणी है, उसकी कोख में से उठा कर जहाँ क्षत्रियकुंडग्राम नगर में सिद्धार्थ क्षत्रिय राजा की त्रिशला क्षत्रियाणी रानी है, उसकी कोख में मध्यरात्रि के समय उत्तरा-फाल्गुनी