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________________ (88) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध दंडरूप कर के प्रकट किये। उस दंड को रत्नमय किया। वे रत्न किस किस जाति के थे ? सो कहते हैं- 1. कर्केतक रत्न, 2. वैडूर्य नीलरत्न, 3. वज्र रत्न, 4. लोहिताक्ष रत्न, 5. मसारगल्ल रत्न, 6. हंसगर्भ रत्न, 7. पुलक रत्न, 8. सौगंधिक रत्न, 9. ज्योतिसार रत्न, 10. अंजन रत्न, 11. अंजनपुलक रत्न, 12. जातरूप रत्न, 13. सुभग रत्न, 14. अंक रत्न, 15. स्फटिक रत्न और 16. अरिष्ठ रत्न। इन सोलह जाति के रत्नों में से असार पुद्गल को हटा कर सार पुद्गल को ग्रहण किया। फिर उत्तर वैक्रिय धारण कर के मूल रूप वहीं रखा। नया रूप बना कर वह मनुष्यलोक में आया। वह किस गति से मनुष्यलोक में आया? सो कहते हैं- एक चंडा, दूसरी चपला, तीसरी जयणा और चौथी वेगा इन चार गतियों से चले, तो कितना ही काल बीत जाये, तो भी वह मनुष्यलोक में नहीं आ सकता। इन चार गतियों का परिमाण इस प्रकार है- 283580 याने कि दो लाख तिरासी हजार पाँच सौ अस्सी योजन और एक योजन के साठ भाग करें तो छह भाग अधिक, इतने क्षेत्र का एक कदम बना कर चलना सो प्रथम चंडागति का परिमाण है। तथा कोई 472633 याने कि चार लाख बहत्तर हजार छह सौ तैंतीस योजन और तीस कला अधिक, इतने क्षेत्र का एक कदम भरते चले, तो यह दूसरी चपलागति का मान जानना। तथा 661686 याने कि छह लाख इकसठ हजार छह सौ छियासी योजन और चौवन कला अधिक, इतने क्षेत्र का एक कदम भरते चले, तो यह तीसरी जयणागति का मान जानना। तथा 850740 याने कि आठ लाख पचास हजार सात सौ चालीस योजन और अठारह कला अधिक, इतने क्षेत्र का एक कदम भरते चले, तो यह वेगागति का मान जानना। ____अब इन गतियों के परिमाण से यदि देवता चले, तो वह छह महीनों में भी इस मनुष्यक्षेत्र में आ नहीं सकता। इसलिए दिव्य देवगति से असंख्यात द्वीप- समुद्र उल्लंघन करते हुए हरिणगमेषी देव जहाँ जंबूद्वीप का भरतक्षेत्र है, जहाँ ब्राह्मणकुंडग्राम नगर है, वहाँ ऋषभदत्त ब्राह्मण के घर में जहाँ
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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