________________ अह छज्जीवणिया चउत्थं अज्झयणं। अथ षड्जीवनिका चतुर्थमध्ययनम्। गत अध्ययन में साधु का संक्षेप से जो आचार कहा गया है, उसका सम्बन्ध मुख्यतया छ: काय के जीवों से है। उनके प्रति दयारूप प्रवृत्ति-निवृत्ति करना ही चारित्र है। इसलिए प्रसङ्गोपात्त उन्हीं छ: काय के जीवों का वर्णन सूत्रकार इस अध्ययन में करते हैं: सुयं मे आउसं ! तेणं भगवया एवमक्खायं- इह खलु छज्जीवणिया नामज्झयणं समणेणं भगवया महावीरेणं कासवेणं पवेइया, सुअक्खाया, सुपण्णत्ता, सेयं मे अहिजिउं अज्झयणं धम्मपण्णत्ती॥ सूत्र 1 // श्रुतं मया आयुष्मन् ! तेन भगवता एवमाख्यातम्-इह खलु षड्जीवनिका नामाध्ययनं श्रमणेन भगवता महावीरेण काश्यपेन प्रवेदिता, स्वाख्याता, सुप्रज्ञप्ता, श्रेयो मेऽध्येतुमध्ययनं धर्मप्रज्ञप्तिः॥१॥ पदार्थान्वयः- आउसं-हे आयुष्मन्-शिष्य ! मे-मैंने सुयं-सुना है तेणं-उस भगवया-भगवान् ने एवं-इस प्रकार अक्खायं-कहा है इह-इस जिनशासन में खलु-निश्चय से छज्जीवणिया-षटकाय के जीवों का कथन करने वाला नाम-नामक अज्झयणं-अध्ययन, जो कासवेणं-काश्यप-गोत्री समणेणं-श्रमण- तपस्वी भगवया-भगवान् महावीरेणं-महावीर ने पवेइया-प्रवेदित किया सुअक्खाया-भलीभाँति से कथन किया सुपण्णत्ता-भली प्रकार से प्रज्ञप्त किया मे-मुझे अज्झयणं-उस अध्ययन का अहिजिउं-अध्ययन करना सेयं-योग्य है धम्मपण्णत्ती-जिसमें धर्म की प्ररूपणा है। मूलार्थ-हे आयुष्मन् ! मैंने सुना है, उस भगवान् ने इस प्रकार कथन किया है-इस जैन-प्रवचन में निश्चय ही षड्-जीव-निकाय नाम का अध्ययन जो काश्यपगोत्री श्रमण भगवान् महावीर ने प्रवेदित किया, भली भाँति प्रतिपादित किया, अच्छी तरह से प्रज्ञप्त किया; मुझे उस अध्ययन का अध्ययन करना योग्य है, क्योंकि वह धर्मप्रज्ञप्तिरूप है-उसमें धर्म की प्ररूपणा की गई है।