SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ त्ति बेमि। तइयं खुडुयायारकहा अज्झयणं सम्मत्तं। क्षपयित्वा पूर्वकर्माणि, संयमेन तपसा च। सिद्धिमार्गमनुप्राप्ताः , त्रायिणः परिनिर्वृताः // 15 // ___ इति ब्रवीमि। तृतीयं क्षुल्लकाचार कथाऽध्ययनं समाप्तम्॥ पदार्थान्वयः- संजमेण-संयम से य-और तवेण-तप से पुव्वकम्माइं-पूर्व कर्मों को खवित्ता-क्षय करके सिद्धिमग्गं-मोक्ष के मार्ग को अणुप्पत्ता-प्राप्त हुए ताइणो-षट्काय के रक्षक साधु परिणिव्वुडा-निर्वाण प्राप्त करते हैं / त्ति बेमि- इस प्रकार मैं कहता हूँ। मूलार्थ- संयम और तप के द्वारा पूर्व कर्मों को क्षय करके मोक्ष के मार्ग को प्राप्त हुए षटकाय के पालक मुनि, मोक्ष को प्राप्त करते हैं। .. ___टीका- जिस जीव के एक बार के तपश्चरण से सम्पूर्ण कर्म निर्जीर्ण नहीं हो सके हों, वह यहाँ से शरीर छोड़कर स्वर्ग जाएगा। वहाँ वह अपनी सम्पूर्ण आयु को भोगकर पुनः मनुष्य-भव धारण करेगा। ऐसा जीव आर्य देश और सुकुल में उत्पन्न होकर जब दीक्षा धारण करेगा और संयम तथा तप के द्वारा शेष पूर्व कर्मों को क्षीण करता हुआ सिद्धि के मार्ग को प्राप्त करेगा तथा षट्काय के जीवों की जब रक्षा करेगा तभी वह निर्वाण को प्राप्त होगा। गाथा में संयम और तप से पूर्व-कर्मों को क्षय करने की बात जो शास्त्रकार ने लिखी है, उसका तात्पर्य चरित्रधर्म की प्रधानता बतलाना है और सिद्धि के मार्ग को प्राप्त हुए जो लिखा है, उसका तात्पर्य सम्यग्दर्शनादि जो मोक्ष का मार्ग प्रतिपादन किया गया है, उससे है। इस तरह तीनों सम्यक्दर्शन, सम्यक्-ज्ञान और सम्यक्-चारित्र का वर्णन यहाँ किया गया समझना चाहिए। उक्त आचार के पालन करने से ही आत्मा स्व तथा पर का उपकार कर सकती है। श्रीसुधर्मास्वामी जम्बूस्वामी से कहते हैं कि हे शिष्य ! श्रमण भगवान् श्री महावीरस्वामी के मुखारविन्द से मैंने जैसा अर्थ इस अध्ययन का सुना है, वैसा ही मैंने तुमसे कहा है। अपनी बुद्धि से कुछ भी नही कहा।' क्षुल्लकाचारकथाध्ययन समाप्त। . तृतीयाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [36
SR No.004497
Book TitleDashvaikalaik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAatmaramji Maharaj, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy