________________ शान्त-स्वभावी मुनि के चित्त में खेद ही पैदा होगा। इसलिए यह भी साधु के लिए अनाचरित है। आतुरस्मरण ' शब्द का दूसरा अर्थ, दोषाश्रित पुरुष को आश्रय देना भी किया जाता है। उत्थानिका-आगे और भी अनाचरितों का वर्णन करते हैं:मूलए सिंगबेरे य, उच्छुखंडे अनिव्वुडे। कंदे मूले य सच्चित्ते, फले बीए य आमए॥७॥ मूलकः शृङ्गबेरं च, इक्षुखण्डमनिर्वृतम् / कन्दो मलं च सचित्तम् , फलं बीजञ्चामकम् // 7 // पदार्थान्वयः-अनिव्वुडे-बिना पका हुआ-सचित्त मूलए-मूलक य-और सिंगबेरेआर्द्रक उच्छुखंडे-इक्षुखण्ड- गनेरियाँ य-और सच्चित्ते-सचित्त कंदे-वज्र-कन्दादि मूले य-और मूलसट्टादि तथा आमए-सचित्त फले-फल बीए-बीज। - मूलार्थ- 33 जो जीवों से निवृत्त नहीं हुए ऐसे मूलक, 34 आर्द्रक, 35 इक्षुखण्ड, 36 कन्द, 37 मूल, 38 सचित्त फल, 39 कच्चे बीज, ये सब अनाचरित हैं। ___टीका-३३, 39. सचित्त मूलक, आर्द्रक, इक्षुखण्ड, वज्रकन्द, मूलसह, फल और बीज, इन सचित्त पदार्थों के सेवन से मुनि का अहिंसा-महाव्रत सुरक्षित नहीं रह सकता। मुनि उसी प्रकार पदार्थ को ग्रहण करे जिसे वह निश्चतरूप से अचित्त समझता हो। जिसमें सचित्त का . थोड़ा संदेह भी हो जाए तो उसे वह ग्रहण न करे। उत्थानिका- मुनि के अनाचीर्णों का और भी वर्णन करते हैं:सोवच्चले सिंधवे लोणे, रोमालोणे य आमए। सामुद्दे पंसुखारे य, कालालोणे य आमए॥८॥ सौवर्चलं सैन्धवं लवणम् , रूमालवणञ्चामकम् / / सामुद्रं पांशुक्षारश्च, कृष्णलवणञ्चामकम् // 8 // पदार्थान्वयः- आमए-सचित्त सोवच्चले-सौवर्चल सिंधवे लोणे-सैन्धव लवण रोमालोणे-रोमक-क्षार य-और आमए-सचित्त सामुद्दे-सामुद्रिक लवण य-तथा पंसुखारे-पांशुक्षार जाति का लवण य-पुनः कालालोणे-कृष्ण लवण। मूलार्थ- 40 सचित्त सौवर्चल, 41 सैन्धव लवण, 42 रोमक-क्षार, 43 सामुद्रिक लवण, 44 ऊषर लवण, 45 काला लवण, इनका सेवन करना मुनि के लिए अनाचीर्ण है। टीका-४०, 45. सौवर्चल, सैन्धव, रोमक-क्षार, सामुद्रिक-क्षार, औषर-क्षार और कृष्ण लवण- ये सब नमक की जातियाँ हैं। सचित्त दशा में इनका सेवन करना, अहिंसा महाव्रत का विघातक है। ये सब पृथ्वीकाय हैं। 1 द.चू.टी. 118 आतुर शरणानि वा दोषातुराश्रय दानानि। 2 चित्तेन सहेति सचित्तः-सजीवः। तृतीयाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [30