________________ के कारण से काम-राग का उदय हो जाता है। तब उसे इस प्रकार की विचारणा से मन को शान्त करना चाहिए कि 'जिस स्त्री आदि को मैं कामदृष्टि से देखता हूँ, वह स्त्री मेरी नहीं हैं और न मैं ही उसका हूँ / तात्पर्य यह है कि जब मेरा उससे कुछ सम्बन्ध ही नहीं है, तो फिर मेरा उस पर राग करना व्यर्थ है।' यहाँ यह शङ्का की जा सकती है कि राग-द्वेष के अभाव को समभाव कहते हैं। स्त्री आदि भोगोपभोगों की अभिलाषा राग-भाव होने से ही पैदा होती है। तो फिर जो व्यक्ति 'समाइ पेहाइ परिव्वयंतो'--समभाव से संसार में विचरण करने वाले हैं, उनके स्त्री आदि भोगोपभोगों की अभिलाषा पैदा हो कैसे सकती है? इसका उत्तर यह है कि कर्मों की बड़ी विचित्रता है। जब तक आत्मा के साथ कर्म का सम्बन्ध लगा हुआ है, तब तक समभाव वाले मुनि के भी कदाचित् वैसा कर्मोदय हो सकता है। ___गाथा में 'सा' और 'तीसे' स्त्रीलिंग शब्दों का जो प्रयोग किया गया है वह उपलक्षण है। जैसे 'काकेभ्यो दधि रक्ष्यताम्'--'कौओं से दही को बचाना' यहाँ पर 'काकेभ्यः' पद उपलक्षण है। वास्तव में सभी प्रकार के पदार्थों से दही की रक्षा करनी उसका अर्थ है। उसी प्रकार वहाँ पर भी सभी प्रकार के पदार्थों से राग-भाव को हटाना चाहिए, यह अर्थ है। .. उत्थानिका-इस प्रकार सूत्रकर्ता ने मनोनिग्रह की अन्तरंग विधि तो बतलाई, परन्तु बाह्य विधि के आसेवन किए बिना प्रायः पूर्ण मनोनिग्रह नहीं किया जा सकता। अत एव सूत्रकार अब बाह्य विधि को बतलाते हैं और साथ ही उसके फल का भी निदर्शन करते हैं:आयावयाही चय सोगमलं, कामे कमाही कमियं खुदुक्खं। .. छिंदाहि दोसं विणइज्ज रागं, ___ एवं सुही होहिसि संपराए॥५॥ आतापय त्यज सौकुमार्यम् , कामान् क्राम क्रान्तं खलु दुःखम्। छिन्धि द्वेषं विनयेद् रागम् , . एवं सुखी भविष्यसि सम्पराये॥५॥ पदार्थान्वयः-आयावयाही-आतापना ले सोगमल्लं-सौकुमार्य भाव को चय-छोड़ कामे-कामभोगों का कमाही-अतिक्रम कर दुक्खं-दुःख कमियं खु-निश्चय ही अतिक्रान्त हो जाता है दोसं-द्वेष को छिंदाहि-छेदन कर राग-राग को विणइज्ज-दूर कर एवं-इस प्रकार से संपराए-संसार में सुही-सुखी होहिसि-हो जाएगा। मूलार्थ-गुरू कहते हैं कि हे शिष्य ! आतापना ले, सुकुमार भाव को छोड़, कामों का अतिक्रम कर।इनके त्यागने से दुःख निश्चय ही अतिक्रान्त हो जाता है। द्वेष को छेदन कर, राग को दर कर। इस प्रकार करने से संसार में त सखी हो जाएगा। ___टीका-आतापनादि तप और सुकुमारता का अभाव काम को रोकने के लिए बाह्य कारण हैं और राग-द्वेष को छोड़ना अन्तरंग कारण। इन दोनों निमित्त कारणों के आसेवन करने 17 ] . दशवैकालिकसूत्रम [द्वितीयाध्ययनम्