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________________ उत्थानिका- अब अव्रती के पास रहने का निषेध करते हैं:गिहिणो वेआवडियंन कुज्जा, ___ अभिवायण-वंदण-पूअणं वा। असंकिलिडेहिं समं वसिज्जा, मुणी चरित्तस्स जओ न हाणी॥९॥ गृहिणो वैयावृत्यं न कुर्यात् , अभिवादन-वन्दन-पूजनं - वा। असंक्लिष्टैः समं वसेत्, मुनिश्चारित्रस्य यतो न हानिः॥९॥... . पदार्थान्वयः-मुणी-साधु गिहिणो-गृहस्थ की वेआवडिअं-वैयावृत्य वा-अथवा अभिवायणवंदण पूअणं-अभिवादन, वन्दन और पूजन आदि सत्कार न कुजा-न करे और जओ-जिससे चरित्तस्स-चारित्र की हाणी-हानि न-न हो, ऐसे असंकिलिटेहि-क्लेश रहित साधुओं के सम-साथ वसिज्जा-निवास करे। मूलार्थ-वास्तविक साधुता उसी साधु में आती है, जो गृहस्थों का वैयावृत्य, अभिवादन, वन्दन और पूजन आदि से सत्कार नहीं करता है जिससे चारित्र की हानि न हो, ऐसे संक्लेश रहित साधुओं के संसर्ग में रहता है। टीका-साधु को साधुवृत्ति से पराङ्मुख होकर किसी आशा के वश गृहस्थों के साथ वैयावृत्य-सेवा भक्ति का, अभिवादन-वचन द्वारा सत्कार करने का, वन्दन-काय द्वारा हाथ जोड़ कर प्रणाम करने का तथा पूजन-वस्त्रादि द्वारा सत्कार करने का व्यवहार किसी भी अवस्था में नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसे सम्बन्ध से भोगविलासों में रुचि होती है एवं चारित्र की तरफ से उदासीनता होती है। जैसा संसर्ग हो वैसा होकर ही रहता है। अब प्रश्र यह होता है कि यदि साधु ऐसे काम करता हुआ गृहस्थों के संसर्ग में न रहे तो फिर किनके संसर्ग में रहे ? सूत्रकार उत्तर देते हैं कि जो मुनि सभी प्रकार के गृहस्थसम्बन्धी संक्लेशों से रहित हैं 'उत्कृष्ट चारित्री हैं उन्हीं के संसर्ग में (साथ में) साधु को रहना चाहिए। कारण कि साधु को उन्हीं के साथ रहना उचित है, जिनके साथ रहने से स्वीकृत चारित्र में किसी प्रकार की हानि न पहुंचे। सहवास समान धर्म वालों का ही उपयुक्त होता है। यह सूत्र 'अनागत काल विषयक' जानना चाहिए, क्योंकि प्रणयन-काल से संक्लिष्ट साधुओं का अभाव है। अतएव उक्त कथन की सिद्धि नहीं हो सकती। उत्थानिका-अब सूत्रकार यदि श्रेष्ठ मुनि न मिलें तो फिर क्या करना चाहिए।' इस प्रश्न का उत्तर देते हैं: 470] दशवैकालिकसूत्रम् [ द्वितीया चूलिका
SR No.004497
Book TitleDashvaikalaik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAatmaramji Maharaj, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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