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________________ 23 64 25. 104 44. 29. 32. 22. पृथ्वी काय के जीवों की रक्षा का - वर्णन ...................... अप्काय के जीवों की रक्षा का वर्णन.. 24. तेजोकाय के जीवों की रक्षा का वर्णन वायुकाय के जीवों की रक्षा का वर्णन 26. वनस्पतिकाय के जीवों की रक्षा का वर्णन..................... 27. सकाय के जीवों की रक्षा का वर्णन अयत्नपूर्वक चलन आदि क्रियाओं से पापबन्ध विषयक वर्णन....... यत्नपूर्वक चलन आदि क्रियाओं से. पाप नहीं बन्धता इस विषय का वर्णन................. 30. सम्यक् ज्ञान आदि के कारण से पाप न बन्धने का वर्णन........ 31. ज्ञान के महत्त्व का वर्णन ......... शास्त्रश्रवण के महत्त्व का वर्णन... . जीव अजीव जानने के महत्त्वका वर्णन .................... 34. गति अगति जानने का वर्णन...... 35. पुण्य-पाप तथा बन्ध और मोक्ष का वर्णन .................... ज्ञानपूर्वक चारित्र ग्रहण करने का फल.... योग निरोध करने से जीव को / सिद्ध गति की प्राप्ति होती है इस का वर्णन ....... सुखशील साधुको सुगति का प्राप्त होना दुर्लभ है ............. तप के गुण वाले को सुगति का प्राप्त होना सुलभ है इसका वर्णन ...... वृद्धावस्था में संयम ग्रहण करने का फल और षट् जीवनिकाय के जीवों की रक्षा करने का उपदेश....... (पञ्चम अध्ययन / 61 | 41. भिक्षा का समय प्राप्त होने पर जाने वाले भिक्षु के कर्त्तव्य .......... 67 | 42. ग्राम व नगर आदि में भिक्षा के लिए जाते हुए मुनि के कर्त्तव्य ........ 43. अंगार आदि की राशि पर न चले ... 104 . 71 वर्षा आदि के होने पर भिक्षा को 73 न जाने का वर्णन ............. 104 45. वेश्या वीथी में न जाने का उपदेश तथा जाने में हानि का वर्णन ...... 105 |-46. श्वान, गौ आदि पशु जहाँ हों अथवा . कलह, युद्ध होता हो, दूर से. . . उस स्थान को छोड़ देने का ... उपदेश .............. ....... 107 चलने की विधि और चलता हुआ उपहास आदि न करे. 48. शंका के स्थान और गृहस्थों के गुप्त. स्थानों को वर्जे ...... निषिद्ध का अप्रीतिकर कुलों में 86 भिक्षार्थ जाने का निषेध ...... गृहस्थ के वस्त्रादि द्वारा आच्छादित / द्वारों को बिना आज्ञा न खोले...... 113 . भिक्षा को जाता हुआ मलमूत्र आदि की बाधा सहित न जाए ......... 114 अंधकारयुक्त कोष्ठक और पुष्प बीज आदि जहाँ बिखरे हुए हों उन / स्थानो को दूर से छोड़ दे........ 115 | 53. कुत्ते आदि का उल्लंघन करके अथवा दूर / से आँखें फाड़ कर देखने का 94 निषेध तथा गृहस्थ की कुल भूमियों को जानने वाला हो।......११६-११७ 95 | 54. गृहस्थों के सचित्त मृत्तिका आदि लाने का जो मार्ग हो उसे छोड़ दे........................ 119 गृहस्थ के घर गया हुआ भिक्षु भिक्षा को नीचे गिराते हुए गृहस्थ से . 40. 96 xlvi हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [विषय-सूची
SR No.004497
Book TitleDashvaikalaik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAatmaramji Maharaj, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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