SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 504
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अह रइवक्का पढमा चूला। अथ रतिवाक्य नामिका प्रथमा चूलिका। उत्थानिका- श्री दशवैकालिक सूत्र के दशवें अध्ययन में भिक्षु के गुण प्रतिपादित किए गए हैं। अब यदि कोई भिक्षु कर्म वशात् धर्म पक्ष से शिथिल होकर भ्रष्ट होता हो, तो उसकी आत्मा को धर्म पथ में पुनः स्थिर करने के लिए चूलिकाओं का अधिकार किया जाता है, क्योंकि ये दोनों चूलिकाएँ सम्यक् प्रकार से अध्ययन की हुई संयम के विषय में आत्म-भावों को अच्छी प्रकार स्थिर करने वाली हैं। इन चूलिकाओं का दशवें अध्ययन के साथ सम्बन्ध है। प्रथम चूलिका का आदिम सूत्र यह है: इह खलु भो ! पव्वइएणं, उप्पण्णदुक्खेणं, संजमे अरइसमावन्नचित्तेणं, ओहाणुप्पेहिणा, अणोहाइएणं, चेव हयरस्सिगयंकुसपोयपडागाभूआई, इमाई, अट्ठारस-ठाणाई, सम्मं संपडिलेहिअव्वाइं, भवंति॥ . . इह खलु भोः प्रव्रजितेन, उत्पन्नदुःखेन, संयमेऽरतिसमापन्नचित्तेन, अवधानोत्प्रेक्षिणा, अनवधावितेन, चैव हयरश्मिगजांकुशपोतपताकाभूतानि, इमानि, अष्टादशस्थानानि, सम्यक् संप्रतिलेखितव्यानि, भवन्ति॥ पदार्थान्वयः-भो-हे शिष्य ! उप्पण्णदुक्खेन-दुःख के उत्पन्न हो जाने पर संजमेसंयम में अरइ समावन्नचित्तेण-जिसका चित्त अरत्ति समापन्न हो गया है, अतः ओहाणुप्पेहिणाजो संयम का परित्याग करना चाहता है, किन्तु अणोहाइएणं-जिसने अभी तक संयम नहीं छोड़ा है पव्वइएणं-ऐसे दीक्षित-साधु को इह-जिन शासन में खलु-निश्चय रूप से हयरस्सिगयंकुसपोयडागा भूआई-अश्व को लगाम, हस्ती को अंकुश और जहाज को ध्वजा के समान इमाइं-ये वक्ष्यमाण अट्ठारस ठाणाइं-अष्टादश स्थानक सम्म-सम्यक् प्रकार से संपडिलेहिअव्वाइं-आलोचनीय भवंति-होते हैं।
SR No.004497
Book TitleDashvaikalaik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAatmaramji Maharaj, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy