________________ दशवैकालिकसूत्रस्य वरीयता-उपयोगिता च त्रीणी रत्नानि जैनानाम्, सर्वेषां श्रेयस्कराणि। सम्यग् ज्ञानं दर्शनं च, सम्यक् चारित्र्यमेव-हि॥ जैन धर्मावलम्बियों के तीन रत्न सम्यग् ज्ञान, सम्यग् दर्शन और सम्यक् चारित्र्य सभी मनुष्यों के लिए कल्याण कारक हैं। विविध जैनागमेषु, चारित्र्य प्रतिपादकम्। श्रेष्ठं दशवैकालिकम्, सारल्यं सर्वसम्मतम्॥ अनेक जैन शास्त्रों में चारित्र्यरत्न का वर्णन करने वाला ग्रन्थरत्न दशवैकालिक अतिसरल और सर्वसम्मत है। आचारांग और आवश्यांग से श्रेष्ठ है। बल बुद्धि कर्मादिभिः, मनुष्यः प्राणिषु वरः। - सचेत् चारित्र्यसंपन्नः, तर्हि देवैरपि पूज्यते॥ बल, बुद्धि तथा शुभ कर्मों को अपनाने से मनुष्य जीवधारियों में प्रधान माना जाता है। यदि वह चारित्र्य गुण युक्त हो, तो देवगणों से भी मान्यता प्राप्त करता है। अतः शय्यंभवेनापि, मनकारव्य पुत्रशिष्याय। ... कृतं दशवैकालिकम्, चारित्र्यसिद्धिदायकम्॥ इसलिए शय्यंभव यतिवर ने अपने पुत्र-शिष्य मनक नाम वाले के लिए दशवैकालिक की रचना की जो चारित्र्य सिद्धि को देने वाला है। दशवैकालिकसूत्रन्तु, गृहस्थस्यापि लाभदम्। . अनेन ग्रन्थरत्नेन, मनकः कैवल्यी कृतः॥ दशवकालिक सूत्र तो सभी गृहस्थ नर नारी के लिए भी लाभदायक है। इस श्रेष्ठ शास्त्र ने मनक को कैवल्य की प्राप्ति करवा दी थी। चारित्र्यरत्नार्थायैव, श्वेताम्बरः पापठ्यते। .. इत्थमेव हि सततम्, तेरापन्थिभिः गृह्यते॥ सम्यक् चारित्र्य की प्राप्ति के निमित्त श्वेताम्बर इसको बार-बार पढ़ते हैं। तेरापंथी मुनिगण एवं श्रद्धालु भी दशवकालिक का अध्ययन करते हैं। ग्रन्थः संसार तारकः, कैवल्य पथ दर्शकः। असमये पूर्णत्वेन, वैकालिक शब्दभाक्॥ xli