________________ के स्थान वर्जित स्थान हैं तथा "द्रुतं द्रुतं न गच्छेत्-" भाग-भाग कर या तेज चाल से भिक्षा लेने न जाए / अष्टादश स्थानों का वर्णन- अति महत्त्वपूर्ण और ग्रहणीय है / साधु को इन की अत्यधिक पालना का संदेश दिया है इसके अतिरिक्त अहिंसा,सत्य, अचौर्य,ब्रह्मचर्य तो कोई भी सद्गृहस्थी अपना सकता है। अनेक जीवनोपयोगी उपदेशों और इन से भी अत्यन्त उपयोगी-दिन-रात के व्यवहार में अपनाई जाने वाली बात है- भाषा / दैनिक क्रियाओं में भाषा का प्रयोग मुख्य है / कैसी भाषा बोलनी चाहिए और कैसी नहीं अपनानी चाहिए / इसका वर्णन सप्तमाध्ययन में किया गया है / "सुवक्क सुद्धीणाम सप्तमं अज्झयणं" दिया है। इस के पश्चात् दिनचर्या, भोजन,शयन,संगति, क्रोध का त्याग,भोगों से निवृत्ति आदि उपदेश "मनक" को दिए गए तो उनको प्रत्येक सद्गृहस्थी-प्रत्येक धार्मिक नर नारी अपने जीवन में अपना सकता है / इतना ही नहीं अपितु-गुरू भक्ति,शिष्य का आचरण,नम्रता आदि गुणरत्न वर्णित हैं / " निद्देश वित्ती पुण जे गुरूणं-निर्देश वर्तिनः पुनः ये गुरुणाम् / " जो महापुरूष साधु हो या गृहस्थी गुरुओं की आज्ञानुसार चलने वाले श्रुतार्थ धर्म के मर्मज्ञ और विनय मार्ग विशेषज्ञ होते है,वे ही सर्वोत्कृष्ट मोक्ष के अधिकारी हैं तथा मोक्ष प्राप्त कर चुके हैं। इस प्रकार दशवैकालिक सूत्र अनेकानेक उपदेशों का भण्डार एवं अपने उपदेशों के वर्चस्व का पर्याय बन गया है / अन्त में- "अप्पा खलु सययं रक्खियव्वो-आत्मा- खलु सततं रक्षितव्यः" चूलिका * द्वितीया उत्थानिका- 16 / इस सूत्र में शास्त्र का उपसंहार और उपदेश का फल बताया गया है-रक्षित आत्मा ही शारीरिक और मानसिक दुःखों से मुक्त होकर अनन्त निर्वाण सुख प्राप्त कर सकती है / इत्थं दशवैकालिकसूत्रम् ,मुख्यतः मुनि धर्मरूपकम् / तथापि सद् गृहस्थानां कृते आत्मोद्धारकं सन्मार्गदम् // // 1 दिनांक: 01-04-2003 लुधियाना (पंजाब) -सूरजकान्त शर्मा एम०ए०(हिन्दी व संस्कृत)बी एङ 1. इस प्रकार दशवैकालिक सूत्र मुख्य रूप से मुनि धर्म का वर्णन करने वाला है। फिर भी श्रद्धालु-उत्तम गृहस्थी जनों के लिए आत्म कल्याण करने और श्रेष्ठ मार्ग दर्शाने वाला है।