________________ सम्यक्तया उपासना करते हैं, इसी प्रकार कल्याणाभिलाषी शिष्यों को अपने धर्मोपदेशक आचार्यों की विनय भक्ति से उपासना करनी चाहिए अर्थात्-आचार्य को जिन-जिन पदार्थों की आवश्यकता समझे, उन्हीं पदार्थों का संपादन कर सेवा करनी चाहिए। क्योंकि जो शिष्य आचार्य की दृष्टि को तथा इंगिताकार को देख कर, आचार्य के मनोभावों को ताड़ (जान) जाता है और तदनुसार कार्य करके भावाराधना करता है, वह संसार में सब का पूज्य होता है। सूत्रोक्त आलोकित एवं इङ्गित शब्द शारीरिक चेष्टाओं के वाचक हैं। इन चेष्टाओं से मनोगत भावों का ज्ञान किया जाता है। यथा-शीत काल में कम्बल पर दृष्टि जाने से मालूम करना कि इस समय आचार्य को सर्दी लग रही है; अतः कम्बल ओढ़ने की इच्छा रखते हैं। यह विचार करके आचार्य के बिना कहे ही आचार्य जी की सेवा में कम्बल लाकर देना तथा कफादि की वृद्धि देखकर शुण्ठी आदि औषधि का प्रबन्ध करना। आलोकित एवं इङ्गित शब्द उपलक्षण हैं; अत: यहाँ इन्हीं के समान अन्य चेष्टाओं का भी ग्रहण है। एक कवि ने मनोगत भावप्रदर्शक चेष्टाओं का संग्रह एक ही श्लोक में बहुत ही अच्छा किया है-"आकारैरिङ्गितैर्गत्या, चेष्टया भाषणेन च / नेत्रवक्त्रविकारैश्च; लभ्यतेऽन्तरगतं मनः।" यद्यपि प्रस्तुत प्रकरण आचार्य जी के नाम से वर्णन किया जा रहा है तथापि इससे 'रत्नाधिकगुणाधिक' सभी पूज्य पुरुषों के विषय में विनय भाव रखना चाहिए; क्योंकि शास्त्रकारों ने जो विनय के 45 भेद वर्णन किए हैं, उनमें उपाध्याय, वाचनाचार्य, स्थविर आदि सभी की विनय करने का समुल्लेख है। उत्थानिका-चारित्र की शिक्षा के लिए ही विनय करना चाहिए, अन्य किसी सांसारिक लोभ से नहीं। इस विषय का सूत्रकार उल्लेख करते हैं:आयारमट्ठा विणयं पउंजे, सुस्सूसमाणो पडिगिज्झ वक्त। जहोवइटुंअभिकंखमाणो, गुरुं तु नासाययई स पुज्जो // 2 // आचारार्थं विनयं प्रयुञ्जीत, . शुश्रूषमाणः परिगृह्य वाक्यम् / यथोपदिष्टमभिकाङ्क्षन् ( अभिकाङ्क्षमाणः), गुरुन्तु नाशातयति सः पूज्यः // 2 // पदार्थान्वयः-जो शिष्य आयारमट्ठा-आचार के लिए गुरु की विनय-विनय पउंजेकरता है सुस्सूसमाणो-आज्ञा को सुनने की इच्छा रखता हुआ वक्वं-तदुक्त वचनों को पडिगिज्झस्वीकार करके जहोवइटुं-यथोक्तरीत्या अभिकंखमाणो-करने की इच्छा करता हुआ कार्य का सम्पादन करता है और जो गुरुं नासाययई-गुरु की आशातना भी नहीं करता है स-वही पुजोपूजनीय होता है। मूलार्थ-जो आचार प्राप्ति के लिए विनय का प्रयोग करते हैं; जो भक्ति पूर्वक नवमाध्ययनम्] हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [393