SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 452
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जाता है। तथैव जो 'गुरुनिर्देशवर्ती' शब्द है, उसका यह भाव है कि जो व्यक्ति गुरुओं की आज्ञा में - रहता है, उसे ही सम्यग्दर्शन, सम्यग् ज्ञान और सम्यग् चारित्र रूप रत्नत्रय' की प्राप्ति होती है। अतः शिष्यों को चाहिए कि यथा ही संभव गुरुश्री की सेवा करें। कैसा ही कारण क्यों न हो, गुरुश्री की आज्ञा का पालन हो। "श्री सुधर्मा स्वामी जम्बूस्वामी जी से कहते हैं कि हे शिष्य ! जैसा मैंने वीर प्रभु से इस नवम अध्ययन के द्वितीय उद्देश का वर्णन सुना था, वैसा ही मैंने तुझ से कहा है।" इति नवमाध्ययन द्वितीयोद्देशः समाप्त। 391 ] दशवैकालिकसूत्रम् [नवमाध्ययनम्
SR No.004497
Book TitleDashvaikalaik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAatmaramji Maharaj, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy