________________ पदार्थान्वयः-तहेव-उसी प्रकार लोए-लोक में जो अविणीअप्पा-अविनीत हैं तेवे सब नरनारिओ-पुरुष और स्त्रियाँ दुहमेहंता-दुःख भोगते हुए छाया-कशा के आघात से वर्णाङ्कित शरीर वाले तथा विगलिंदिआ-नासिकादि इन्द्रियों से हीन दीसंति-देखे जाते हैं। मूलार्थ-संसार में अविनय करने वाले बहुत से पुरुष और स्त्रियाँ नाना प्रकार के कष्टों को भोगते हुए, कशा आदि के आघात से पीड़ित हुए एवं कान नाक आदि के छेदन से विरुप हुए, देखे जाते हैं। टीका- इस गाथा में विनय और अविनय का फल मनुष्य को लक्ष्य करके कथन किया है। जैसे कि, इस मनुष्य लोक में बहुत से पुरुष या स्त्रियाँ घोरातिघोर दुःख भोगते हुए तथा कशा "हंटर" आदि के आघात से घायल हो कर और नाक, कान आदि अङ्गोपाङ्ग के काटने से विकलेन्द्रिय बने हुए, प्रत्यक्ष देखने में आते हैं। कारण यह है कि, जो चोर हैं, जो पर-स्त्री के लंपटी हैं, उन की इसी प्रकार की बुरी गति देखी जाती है और यह सब अविनय के ही फल हैं। सदनुष्ठान का (सत्कर्मों का) न करना ही अविनय है, इसी लिए उक्त फल असदाचारी लोगों को भोगने पड़ते हैं। ___उत्थानिका- अब फिर इसी विषय पर कहते हैं:दंडसत्थपरिज्जुन्ना , असब्भवयणेहि अ। कलुणा विवन्नछंदा, खुप्पिवासाइपरिग्गया॥८॥ दण्डशस्त्रपरिजीर्णाः , असभ्यवचनैश्च करुणाः व्यापन्नच्छन्दसः, क्षुत्पिपासापरिगताः // 8 // पदार्थान्वयः-अविनीतात्मा पुरुष दंडसत्थपरिजुन्ना-दण्ड और शस्त्रों से जर्जित अतथा असम्भवयणेहि-असभ्य वचनों से ताड़ित कलुणा-अतीव दीन विवन्नच्छंदा-पराधीन और खुप्पिवासाइपरिगया-भूख और प्यास से पीड़ित दीसंती-देखे जाते हैं। . मूलार्थ-अविनीत पुरुष दण्ड और शस्त्र से क्षत-विक्षत शरीर वाले, असभ्य वचनों से सर्वत्र तिरस्कार पाने वाले, दीन-भाव दर्शाने वाले, पराधीन जीवन बिताने वाले एवं क्षुधा-तृषा की असह्य वेदना भोगने वाले देखे जाते हैं। टीका-इस गाथा में भी अविनय के ही फल दिखाए गए हैं? यथा-बेंत आदि के मारने से अथवा खड्गादि शस्त्रों के आघात से जिनका शरीर क्षत-विक्षत होकर सब प्रकार से दुर्बल हो गया है तथा जो नित्य-प्रति असभ्य वा कर्कश वचनों के सुनने के कारण दुःखी और सत्पुरुषों के लिए करुणा के पात्र हुए हैं तथा जिनकी सदैव काल पराधीन वृत्ति है अर्थात् जो स्वेच्छानुसार इधर उधर जा आ नहीं सकते और कोई काम नहीं कर सकते तथा जो भूख प्यास से भी पीड़ित रहते हैं, राजा आदि के आदेश से कारागार में पड़े हुए अन्न पानी के निरोध का दुःख भोगते हैं। वे सब अविनयी, असदाचारी, अभिमानी एवं क्रोधी पुरुष होते हैं। क्योंकि, ये कष्ट अविनय के दोष से ही होते हैं। अविनीतात्मा इसी लोक में ऐसे दुःख पाते हैं, यह बात नहीं है; किन्तु अकुशलानुष्ठान के कारण ये परलोक में भी इसी प्रकार के घोर दुःख पाते हैं। अत: यह 377 ] दशवकालिकसूत्रम् .[नवमाध्ययनम्