________________ अह णवमझयणं बीओ उद्देसो अथ नवमाध्ययने द्वितीय उद्देशः स्कन्धप्र उत्थानिका- प्रस्तुत अध्ययन में विनय का अधिकार है; अतः इस दूसरे उद्देश्य में भी अविनय का खण्डन करके विनय का ही मण्डन किया जाता है। सम्पूर्ण धर्मों का मूल विनय है, यह दृष्टान्त द्वारा कहते हैं :मूलाउ खंधप्पभवो दुमस्स, खंधाउपच्छा समुविंति साहा। साहप्पसाहा विरुहंति पत्ता, तओ से पुष्पं च फलं रसो अ॥१॥ मूलात् स्कन्धप्रभवः द्रुमस्य, स्कन्धात् पश्चात् समुपयान्ति शाखाः। शाखाभ्यः प्रशाखाः विरोहन्ति पत्राणि, ततः तस्य पुष्पं च फलं रसश्च॥१॥ पदार्थान्वयः- मूलाउ-मूल से दुमस्स-वृक्ष का खंधप्पभवो-स्कन्ध उत्पन्न होता है पच्छापश्चात् खंधाउ-स्कन्ध से साहा-शाखाएँ समुविंति-उत्पन्न होती हैं साहप्पसाहा-शाखाओं से प्रशाखाएँ विरुहंति-उत्पन्न होती हैं तओ-तदनन्तर पत्ता-पत्र उत्पन्न होते हैं और फिर सि-उस वृक्ष के पुष्फं-पुष्प च-फिर फलं-फल च-फिर रसो-रस उत्पन्न होता है। मूलार्थ- वृक्ष के मूल से प्रथम स्कन्ध उत्पन्न होता है। तत्पश्चात् स्कन्ध से शाखाएँ , शाखाओं से प्रशाखाएँ ,प्रशाखाओं से पत्र, पत्रों के बाद पुष्प और पुष्पों के अनन्तर फल एवं फिर अनुक्रम से फलों में रस होता है। टीका- अब सूत्रकार, दृष्टान्त देकर विनय धर्म से जो सद्गुण उत्पन्न होते हैं उनका दिग्दर्शन कराते हुए कहते हैं। यथा- मूल से वृक्ष का स्कन्ध (स्थूलरूप) उत्पन्न होता है और फिर स्कन्ध के पश्चात् शाखाएँ उत्पन्न होती हैं / शाखाओं से प्रशाखाएँ उत्पन्न होती हैं और फिर प्रशाखाओं से पत्र उत्पन्न होते हैं / तदनन्तर पत्रों के पश्चात् वृक्ष के पुष्प लगते हैं और पुष्पों के पश्चात् फल एवं फलों में फिर रस पड़ता है। ये सब अनुक्रम पूर्वक ही उत्पन्न होते हैं। इस दृष्टान्त देने का सारांश यह निकलता है कि ,