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________________ हो, जो स्त्री, पशु, आदि से रहित हो तथा इसी प्रकार की शय्या तथा आसनादि वस्तुएँ। भी अन्यार्थ कृत ही अपने उपयोग में लानी चाहिए। टीका- इस गाथा में उपाश्रय और शयनासन आदि के सेवन के विषय में वर्णन किया गया है। जैसे कि, जो उपाश्रय (स्थानक) अन्य के वास्ते बनाया गया है अर्थात् जो साधु का निमित्त रख कर नहीं बनाया गया है तथा जो उच्चार भूमि संपन्न है; क्योंकि, जिस स्थान में मलमूत्र आदि त्यागने के लिए स्थान नहीं होता, वह स्थान साधु के ठहरने लायक नहीं होता तथा जो स्त्री, पशु और नपुंसक आदि से भी रहित है, ऐसे उपाश्रय में ही साधु को ठहरना चाहिए तथा इसी प्रकार जो संस्तारक और पीठ फलक आदि वस्तुएँ भी अन्यार्थ कृत हों, साधु के लिए नहीं बनाई गई हों, तो साधु उनको अपने काम में ला सकता है। साधु को वे ही पदार्थ अग्राह्य होते हैं, जो केवल साधु के उद्देश्य से बनाए हुए होते हैं। यदि ऐसा कहा जाए कि, उपाश्रय उच्चार भूमि संपन्न होना चाहिए, ऐसा क्यों लिखा है तो इस के उत्तर में कहा जाता है कि, यदि उपाश्रय उच्चार भूमि युक्त नहीं होगा तो पुनः पुनः बाहर जाने से लोगों में अविनय की प्रवृत्ति होगी तथा रात्रि में नाना प्रकार के दोषों के लगने की संभावना की जा सकेगी। .. __उत्थानिका- अब सूत्रकार, 'उपर्युक्त स्थानों में किस प्रकार धर्म कथा कहनी / चाहिए' यह प्रतिपादन करते हैं : विवित्ता अभवे सिज्जा, नारीणं न लवे कह। गिहिसंथवं न कुज्जा, कुज्जा, साहूहिं संथवं॥५३॥ विविक्ता च भवेत् शय्या, नारीणां न लपेत् कथाम्। गृहिसंस्तवं न कुर्यात्, कुर्यात् साधुभिः संस्तवम्॥५३॥ पदार्थान्वयः-सिजा-यदि उपाश्रय विवित्ता-अन्य साधुओं से रहित भवे-हो अतो वहाँ अकेला नारीणं-स्त्रियों के मध्य में कह-कथा-वार्ता न लवे-न कहे तथा गिहिसंथवंगृहस्थों से परिचय न कुज्जा-न करे; किन्तु साहूहिं-साधुओं के साथ ही संथवं-संस्तव (परिचय) कुज्जा -करे। मूलार्थ-उपाश्रय में यदि और साधु न हों केवल अकेला ही हो तो स्त्रियों से अन्य बातचीत तो क्या, धर्म-कथा-प्रवचन का भी दुस्साहस न करे तथा गृहस्थों के साथ संस्तव-परिचय भी न करे, क्योंकि वह स्वयं साधु है। अतः साथी साधुओं के साथ ही उसको परिचय करना चाहिए। टीका- यदि उपाश्रय विविक्त है अर्थात् अन्य साधु या गृहस्थ नहीं हैं; जिस प्रकार अपने बिल में सर्प अकेला ही रहता है, ठीक उसी प्रकार साधु भी अपने उपाश्रय में अकेला ठहरा हुआ हो तो वहाँ कदापि अकेली स्त्रियों को कथा वार्ता न सुनाए / कारण यह है कि, इससे अनेक प्रकार के दोष उत्पन्न होते हैं। 'एकान्त स्थान में स्त्रियों का संसर्ग ब्रह्मचारी के लिए कितना हानिकारक होता है इसके कहने की कोई आवश्यकता नहीं। हाँ, समय देख कर पुरुषों को धर्म कथा अवश्य सुना सकता है। यदि अन्य साधु और गृहस्थ उपाश्रय में पास मौजूद हों, . तो स्त्रियों को भी धर्म कथा सुना सकता है, अन्यथा नहीं। अब प्रश्न होता है कि, यदि गृहस्थों 344] दशवैकालिकसूत्रम् [अष्टमाध्ययनम्
SR No.004497
Book TitleDashvaikalaik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAatmaramji Maharaj, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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