________________ उत्थानिका-अब सूत्रकार, कषाय परित्याग का सदुपदेश देते हैं:कोहं माणं च मायं च, लोभं च पाववड्ढणं। वमे चत्तारि दोसे उ, इच्छंतो हिअमप्पणो॥३७॥ .. क्रोधं मानं च मायां च, लोभं च पापवर्द्धनम्। वमेत् चतुरो दोषाँस्तु, इच्छन् हितमात्मनः॥३७॥ ___ पदार्थान्वयः- अप्पणो-अपने हिअं-हित की इच्छंतो-इच्छा करता हुआ साधु पाववड्ढणं-पाप के बढ़ाने वाले कोहं-क्रोध च-तथा माणं-मान च-तथा मायं-माया च-तथा लोभ-लोभ इन चत्तारि-चार दोसे-दोषों को उ-निश्चय रूप से वमे-छोड़ दे। मूलार्थ-जो साधु, वस्तुतः अपना हित चाहता है। उसे क्रोध, मान, माया तथा लोभ इन चार महादोषों का पूर्ण रूप से परित्याग कर देना चाहिए। क्योंकि ये चारों दोष पूरी-पूरी पाप-वृद्धि करने वाले हैं और जहाँ पाप वद्धि है वहाँ हित कहाँ ? टीका- इस गाथा में हित प्राप्ति के उपाय कथन किए हैं। जेसै कि, जो साधु अपनी आत्मा का हित चाहता है उसे योग्य है कि, वह अपने आत्महित के लिए जो पाप कर्म के बढ़ाने वाले चार आध्यात्मिक दोष हैं, उनको सर्वथा छोड़ दे। कारण यह है कि, उन दोषों के त्यागने से ही सर्व-संपंद्-रूप हित की प्राप्ति होती है। अब प्रश्न यह होता है कि, वे चार आध्यात्मिक दोष कौन से हैं ? उत्तर में कहा जाता है कि, क्रोध, मान, माया और लोभ इन्हीं के द्वारा पापकर्म की वृद्धि होती है। ये चारों ही पापकर्म संपादन करने के मूल कारण हैं / अतएव विचार शील साधु को चाहिए कि इन चारों महादोषों का सर्वथा परित्याग कर दे। __उत्थानिका- अब सूत्रकार क्रोध आदि दोषों के क्या हानि होती है' यह कहते हैं:कोहो पीई .पणासेइ, माणो विणयनासणो। माया मित्ताणि नासेइ, लोभो सव्वविणासणो॥३८॥ क्रोधः प्रीतिं प्रणाशयति, मानो विनयनाशनः। माया मित्राणि नाशयति, लोभः सर्वविनाशनः॥३८॥ पदार्थान्वयः-कोहो-क्रोध पीइं-प्रीति का पणासेइ-नाश करता है माणो-अहंकार विणयनासणो-विनय का नाश करता है माया-माया मित्ताणि-मित्रता का नासेइ-नाश करती है और लोभो-लोभ तो सव्वविणासणो-सभी श्रेष्ठ गुणों का नाश करता है। - मूलार्थ-क्रोध से प्रीति का नाश होता है, मान से विनय का नाश होता है, माया से मित्रता का नाश होता है और चौथा, लोभ सभी सद्गुणों का नाश करने वाला टीका- इस गाथा में उक्त चारों दोषों का ऐहलौकिक फल दिखाया गया है। जैसेक्रोध प्रीति का नाश करने वाला है; क्रोधान्ध मनुष्य ऐसे दुर्वचन बोलता है, जिससे प्रीति का सर्वथा उच्छेद हो जाता है। इसी प्रकार मान, विनय का नाश करने वाला है; क्योंकि, मानी पुरुष अष्टमाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [333