________________ अध्रुवं जीवितं ज्ञात्वा,सिद्धिमार्ग विज्ञाय। विनिवर्तेत भोगेभ्यः,आयुः परिमितमात्मनः॥३४॥ पदार्थान्वयः- जीविअं अपने जीवन को अधुवं अस्थिरनच्चा-जान करतथा सिद्धिमग्गं-मोक्ष केमार्गको विआणिआ-जान करतथैव अप्पणो-अपनी आउं-आयुको परिमिअं-परिमित स्वल्प जान कर, साधुभोगेसु-भोगों से विणिअट्टिज-निवृत्त हो जाए। मूलार्थ-अपनेजीवनको अध्रुव, रत्नत्रयरूपमोक्षको सत्यएवंअपनी आयुको स्वल्प जान कर,साधुको हमेशा काम भोगों से निवृत्त ही रहना चाहिए। टीका- इस गाथा में श्री भगवान् उपदेश करते हैं कि, हे साधुओ ! यह तुम्हारा जीवन अस्थिर है; इस का कोई विश्वास नहीं कि किस समय समाप्त हो जाए। अतः तुम अपने इस जीवन को अस्थिर जान कर तथा इसी तरह सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यग्चारित्र रूप जो सिद्धि मार्ग है, उस को ठीक-ठीक समझ कर और अपने आयुष को भी स्वलपतर जान कर काम भोगों से सर्वथा निवृत्त करो। क्योंकि फिर तुम्हेंयह समय मिलना दुर्लभ है। मनुष्य जन्म बार-बार नहीं मिलता।जब जीव का अनंत पुण्योदय होता है, तब कहीं यह मनुष्य जन्म मिलता है। जिस प्रकार शास्त्रकारने जीवन को अस्थिर प्रतिपादन किया है, ठीक इसी प्रकार इसके प्रतिकूल मोक्ष को स्थिर बतलाया है।अतएव मोक्ष केमार्ग को ठीक समझ कर साधुको काम भोगों से निवृत्ति करनी चाहिए। जिससे शीघ्र ही मोक्ष पद की प्राप्ति हो सके और शाश्वत सुख के अनुभव करने का अवसर मिल सके। ___ उत्थानिका• अब, फिर प्रकारान्तर से इसी विषय को स्पष्ट किया जाता है:बलं थामं च पेहाए,सद्धामारुग्गमप्पणो। खेत्तं कालं च विन्नाय, तहप्पाणं निजुंजए॥३५॥ बलं स्थाम प्रेक्ष्य, श्रद्धामारोग्यमात्मनः / ...क्षेत्रं कालं च विज्ञाय, तथात्मानं नियुञ्जीत // 35 // पदार्थान्वयः- अप्पणो-अपनी बलं-इन्द्रियों की शक्ति को थाम-शारीरिक शक्ति को सद्धां-श्रद्धा को च-तथा आरुग्गं-नीरोगता को पेहाए-देख भाल कर च-और तह-इसी प्रकार खेत्तं-क्षेत्र को कालं-काल को विनाय-जान कर अप्पाणं-अपनी आत्मा को निजुंजए-धर्म कार्य में नियुक्त करे। मूलार्थ-मानसिक बल,शारीरिक बल, श्रद्धा,अरोगता तथा द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव आदिका ठीक-ठीक विचारकरकेसाधुअपनी आत्मा को धर्मकार्य में नियुक्तकरे। ___टीका- धर्म कृत्य करने के लिए छः बल प्राप्त हुए हैं, तो फिर मुमुक्षु को प्रमाद नहीं करना चाहिए। जैसे कि, मानसिक बल, शारीरिक बल तथा ऋद्धि आदि का सांसारिक बल, . १जैसे आज कल की अपेक्षा से देखा जाए तो प्रायः मध्य खण्ड में सौ वर्ष की आयु होती है। अष्टमाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [331