________________ कतराणि अष्टौ सूक्ष्माणि, यानि पृच्छेत् संयतः। इमानि तानि मेधावी, आचक्षीत विचक्षणः॥१४॥ पदार्थान्वयः- संभव है, मैं दया का अधिकारी न हो सकू? इस भय से जाइं-जिन सूक्ष्मों को संजए-साधु पुच्छिज्ज-पूछे, वे अट्ठसुहुमाइं-आठ सूक्ष्म कयराइं-कौन से हैं ? शिष्य के इस प्रश्न के उत्तर में मेहावी-बुद्धिशाली विअक्खणो-विचक्षण गुरु आइक्खिज-कहे कि ताई-वे आठ सूक्ष्म इमाइं-ये हैं। मूलार्थ-शिष्य प्रश्न करता है कि, हे भगवन् ! साधु को जिनका जानना अत्यावश्यक है, वे आठ सूक्ष्म कौन कौन से हैं ? मर्यादावर्ती शास्त्र विचक्षण गुरु उत्तर देते हैं कि, हे शिष्य! वे आठ सूक्ष्म इस प्रकार हैं। टीका-शिष्य ने प्रश्न किया-हे भगवन् ! वे आठ सूक्ष्म पदार्थ कौन कौन से हैं ? तब गुरु ने, 'जो मेधावी विचक्षण हैं' उत्तर में कहा, हे शिष्य! वे पदार्थ निम्न कथनानुसार है। शिष्य ने प्रश्न इस लिए किया है कि, उनके जाने बिना जब दया का अधिकारी ही नहीं बना जा सकता, तो उनका जानना बहुत आवश्यक है। क्योंकि उनका भली भाँति जान लेने से जीवों का उपकार होता है और बिना जाने अपकार होने की संभावना है। सूत्र में उत्तर दाता गुरु के प्रति जो 'मेधावी' और 'विचक्षण' विशेषण लगाए गए हैं, उनका भाव यह है कि, उक्त गुण संयुक्त गुरु के वाक्य ही श्रोताओं को विशुद्धतया उपादेय हो सकते हैं। अन्यथा विपर्यय होने की संभावना रहती है। विद्याहीनं गुरूं त्यजेत्'। उत्थानिका- अब सूत्रकार, आठ सूक्ष्म के नाम बतलाते हैं:सिणेहं पुप्फसुहुमं च, पाणुत्तिंगं तहेव य। पणगं बीअहरिअं च, अंडसुहुमं च अट्ठमं॥१५॥ स्नेहं. पुष्पसूक्ष्मं च, प्राणोत्तिंगं तथैव च। पनकं बीजहरितं च, अण्डसूक्ष्मं च अष्टमम्॥१५॥ पदार्थान्वयः-सिणेहं-स्नेह सूक्ष्म पुप्फसुहुमं-पुष्प सूक्ष्म च-और पाण-प्राणी सूक्ष्म उत्तिंग-कीड़ी का नगर सूक्ष्म य-और तहेव-इसी प्रकार पणगं-पनक सूक्ष्म बीअ-बीज सूक्ष्म हरि-हरित सूक्ष्म च-तथा अट्ठमं-आठवाँ अंडसुहुमं-अण्ड सूक्ष्म-ये आठ सूक्ष्म हैं। मूलार्थ-स्नेह सूक्ष्म,पुष्प सूक्ष्म, प्राणी सूक्ष्म,उत्तिंग सूक्ष्म,पनक सूक्ष्म, बीज सूक्ष्म, हरि सूक्ष्म और अण्ड सूक्ष्म-ये आठ प्रकार के सूक्ष्म जीव हैं। टीका- इस गाथा में त्रस और स्थावर दोनों राशियों में से जो सूक्ष्म शरीर वाले हैं; उनका वर्णन किया गया है, जिससे दया के अधिकारी को उनकी रक्षा करने का सरल मार्ग मालूम हो जाए। यथा- प्रथम, स्नेह सूक्ष्म- अवश्याय-ओस, हिम-बर्फ, महिका-धुंध, अष्टमाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [317