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________________ टीका-इस गाथा में त्रसकाय के जीवों की रक्षा का उपदेश दिया गया है और कहा . गया है कि, जो साधु, सब जीवों पर समान भाव रखने वाले हैं और इसी कारण से जिसने सब प्राणियों में दण्ड का परित्याग कर दिया है; उस को योग्य है कि वह त्रस प्राणियों की मन, वचन और काय से कदापि हिंसा न करे। किन्तु इस जगत् 'जो जीवों से भरा हुआ है' के यथावत् स्वरूप को देखता रहे। तात्पर्य यह है कि. साध प्रत्येक जीव के स्वरूप को देखे कि वह अपने कृत कर्मों के अनुसार नरक, तिर्यंच, मनुष्य और देव योनियों में किस किस प्रकार के सुखदुःखों का अनुभव कर रहा है। इस प्रकार के भावों से निर्वेद भाव सदैव बना रहता है और किसी को पीड़ा पहुँचाने का हृदय में विचार तक नहीं होता। उत्थानिका- अब सूत्रकार, स्थूल विधि के कथन के बाद सूक्ष्म विधि के विषय में कहते हैं: अट्ठसुहुमाइं पेहाए, जाइं जाणित्तु संजए। दयाहिगारी भूएसु, आस चिट्ठ सएहि वा॥१३॥ अष्टौ सूक्ष्माणि प्रेक्ष्य, यानि ज्ञात्वा संयतः। दयाधिकारी भूतेषु, आसीत् तिष्ठेत् शयीत वा॥१३॥ पदार्थान्वयः- संजए-यत्नावान् साधु जाइं-जिनको जाणित्तु-जानकर भूएसु-भूत जीवों पर दयाहिगारी-दया का अधिकारी होता है उन अट्ठ-आठ सुहुमाइं-सूक्ष्मों को पेहाए-भली भाँति देख कर ही आस-बैठ चिढ़े-खड़ा हो वा-अथवा सएहि-शयन करे। मूलार्थ-जिन्हें जान कर ही वस्तुतः दया का अधिकारी बना जाता है, साधु उन आठ सूक्ष्मों को प्रथम अच्छी तरह देख कर ही शुद्ध निर्जीव स्थान पर उठने, बैठने, सोने आदि की यथोचित क्रियाएँ करे। टीका- स्थूल विधि तो कथन की गई, अब सूक्ष्म जीवों की रक्षा के वास्ते सूक्ष्म विधि का वर्णन किया जाता है। जैसे कि, यत्न शील साधु को योग्य है वह प्रथम आठ प्रकार के सूक्ष्म जीवों को भली भाँति देखे और फिर उठने, बैठने वा सोने आदि की क्रियाएँ करे। अर्थात् जितनी क्रियाएँ करनी हों, वे सब आठ सूक्ष्मों को देख कर ही करनी चाहिए। क्योंकि, उनके अच्छी तरह जान लेने पर फिर वह दया का अधिकारी बन जाता है और जब जीवों को भली भाँति जानता ही नहीं, तो फिर उनकी दया का अधिकारी कैसे बन सकता है? "पढमं नाणं तओ दया।" अतः सिद्ध हुआ कि, साधुओं को आठ प्रकार के जो सूक्ष्म जीव हैं, उनका अच्छी तरह ज्ञान करना चाहिए। बिना इनको जाने, संयम शुद्ध का नहीं पालन हो सकता। जो साधु अपरिज्ञा से अथवा प्रत्याख्यान परिज्ञा से इनके स्वरूप को जानते हैं, वे दया के पूर्ण अधिकारी हो जाते हैं। उत्थानिका- वे आठ सूक्ष्म कौन हैं ? अब इसका उत्तर दिया जाता है:कयराइं अट्ठ सुहुमाइं, जाइं पुच्छिज्ज संजए। इमाइं ताइं मेहावी, आइक्खिज विअक्खणो॥१४॥ . 316] दशवैकालिकसूत्रम् [ अष्टमाध्ययनम्
SR No.004497
Book TitleDashvaikalaik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAatmaramji Maharaj, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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