________________ गहनेषु न तिष्ठेत् , बीजेषु हरितेषु वा। उदके तथा नित्यं,उत्तिंगपनकयोः वा॥११॥ पदार्थान्वयः- गहणेसु-वृक्षों के कुंजों के विषय में बीएसु-शाली आदि बीजों पर वा-अथवा हरिएसु-हरित दूर्वा आदि पर तहा-इसी प्रकार उदगंमि-उदकनाम वाली वनस्पति परवा-और उत्तिंगपणगेसुउत्तिंग तथा पनकनामकवनस्पति पर संयमी निच्चं-सदैव न चिट्ठिजा-खड़ा न रहे। ___मूलार्थ-साधुओंको वृक्षों के कुंजों में, बीजों पर,हरित दूर्वादि परतथैव उदक उत्तिंग और पनकनामक वनस्पतियों परयावज्जीवन कभी भी खड़ा नहीं होना चाहिए। . टीका- वनस्पति काय की रक्षा के लिए साधु निम्न स्थानों पर कभी खड़ा न रहे। जैसे कि, वृक्षों के समूह में / क्योंकि, वहाँ संघट्टादि हो जाने का भय रहता है। इसी प्रकार जिस स्थान पर शाली आदि बीज, दूर्वा आदि हरितकाय, उदक नामी वनस्पति, उत्तिंग (सर्पछत्रादि) रूप वनस्पति विशेष और पनक (उल्लि) वनस्पति विशेष (लीलन फूलन) इत्यादि वनस्पतियाँ हों और उनसे संघट्टादि क्रियाओं के होने की संभावना हो, उस स्थान पर साधु को खड़ा नहीं रहना चाहिए। जब खड़ेरहने का ही निषेध किया गया है, तो भला फिर ऊपर खड़े रहने की या सोने की तो बात ही क्या है? उत्थानिका- अब सूत्रकार, त्रसकाय की यत्ना के विषय में उपदेश देते हैं:तसे पाणे न हिंसिज्जा, वाया अदुवकम्मुणा। उवरओ सव्वभूएसु, पासेज विविहं जगं॥१२॥ त्रसान्प्राणिनःन हिंस्यात्,वाचा अथवा कर्मणा। उपरतः सर्वभूतेषु, पश्येत् विविधं जगत्॥१२॥ .. ... पदार्थान्वयः- सव्वभूएसु-सब प्राणियों के विषय में उवरओ-दण्ड का परित्याग करने वाला साधुवाया-वचन सेअदुव-अथवा कम्मणा-कर्म सेतसे त्रस पाणे-प्राणियों की न हिंसिज्जा-हिंसा न करे, किन्तु विविहं-नाना प्रकार के चित्र विचित्र स्वरूप वालेजगं-जगत्को पासेज-देखे। ___ मूलार्थ-सभी जीवों पर से हिंसा दण्ड को दूर कर दिया है जिसने ऐसा, समस्त स्थावर,जंगम प्राणियों पर उत्कृष्ट दया भाव रखने वाला मुनि; मन, वचन और काय के योग से त्रस जीवों की कदापि हिंसा न करे।किन्तु स्वीकृत अहिंसा भावों को प्रतिदिन सुदृढ़ बनाने के वास्तेनाना प्रकारके सुखी एवंदुखी जीवों से व्याप्त इस जगत्केस्वरूपको सम्यक्तया निरीक्षण करता रहे। 1 उदक यह वनस्पति विशेष है। पर किसी-किसी आचार्य का मन्तव्य है कि, यहाँ उदक से जल ही का ग्रहण है। अतः जहाँ जल फैला हुआ हो, वहाँ पर नहीं खड़ा होना चाहिए क्योंकि जहाँ जल होता है, वहाँ नियम से वनस्पति का सद्भाव होता है। अष्टमाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [315