________________ संखडिं संखडिं ब्रूयात्, पणितार्थ इति स्तेनकम्। बहुसमानि तीर्थानि, आपगानां व्यागृणीयात्॥३७॥ पदार्थान्वयः- संखडिं-संखडि को संखडिं-संखड़ि तेणगं-चोर को पणिअट्ठत्ति-अपने प्राणों को कष्ट में डाल कर स्वार्थ साधने वाला बूआ-कहे, और नदियों के लिए आवगाणं-इन नदियों के तित्थाणि-तीर्थ बहुसमाणि-बहुसम हैं त्ति-इस प्रकार विआगरे-विचार कर बोले। ____ मूलार्थ- विद्वान् साधु, संखड़ि (जीमनवार) को यह संखड़ि है, चोर को यह अधिक संकट सह कर स्वार्थ सिद्ध करने वाला है, नदी को यह नदी समतल तट वाली है इस प्रकार विचार कर कहे। ____टीका- जब किसी कारण से बोलना ही पड़े, तो मुनि को निरवद्य ही भाषा बोलनी चाहिए। जब किसी गृहस्थ के यहाँ जीमनवार होती देखे तो यह कह सकता है कि, अमुक स्थान पर संकीर्ण जीमनवार हो रही है। यदि चोर को देखे, तो यह कह सकता है कि, वह चोर धन का अर्थी है, इतना ही नहीं किन्तु अपने स्वार्थ के लिए देखो किस प्रकार के कष्टों का सामना करता है। कभी नदी को देखे, तो इस प्रकार कहे कि, इस नदी का तीर्थ (किनारा-पानी) बहुसम है, अतः इस में आकर बहुत से जीव पानी पीते हैं और लोग पानी भर कर ले जाते हैं। तात्पर्य यह है कि, जिस प्रकार किसी प्राणी को दुःख न पहुँचे, साधु को उसी प्रकार बोलना चाहिए। क्योंकि, सत्य ही वाणी का भूषण है। उत्थानिका- अब सूत्रकार, नदी के विषय में निषेधात्मक वचनों का उल्लेख करते हैं :तहा नइओ पुनाओ, कायतिज्जत्ति नो वए। नावाहिँ तारिमाउत्ति, पाणिपिज्जत्ति नो वए॥३८॥ तथा नद्यः पूर्णाः, कायतरणीया इति नो वदेत्। नौभिस्तरणीया इति, प्राणिपेया इति नो वदेत्॥३८॥ पदार्थान्वयः- तहा- इसी प्रकार नइयो- ये नदियाँ पुन्नारो- जल से पूर्ण भरी हुई हैं कायतिज- भुजाओं से तैरने योग्य हैं त्ति- इस प्रकार नो वए-न कहे। नावाहिं- यह नावों द्वारा तारिमाउत्ति-तैरने योग्य है तथा पाणिपिज्ज-प्राणी इसके तट से ही सुख पूर्वक पानी पी सकते हैं त्ति-इस प्रकार नो वए-न बोले। ___ मूलार्थ- साधु को नदियों के विषय में 'ये नदियाँ जल से पूरी तरह भरी हुई बह रही हैं, बाहु-बल से तैरने योग्य हैं, नौकाओं द्वारा तैरने योग्य हैं तथा इसके तट पर सभी प्राणी सुख पूर्वक अच्छी तरह जल पी सकते हैं। इस प्रकार नहीं बोलना चाहिए। .. टीका- जब साधु, किसी समय नदी को देखे, तब उसको देखकर इस प्रकार न कहे कि, 'यह नदी जल से परिपूर्ण भरी हुई एक प्रवाह से बह रही है, अतः यह भुजा द्वारा तैरने योग्य है। इस नदी का जल बहुत है, इसे तो नौका द्वारा पार करना चाहिए। इस नदी के तट ऐसे सम बने हुए हैं कि जिससे प्रत्येक प्राणी सुख पूर्वक जल पी सकता है। क्योंकि, इस प्रकार की वाणी बोलने से प्रवृत्ति आदि दोषों की उत्पत्ति होती है और विघ्नादि आशङ्का से फिर उसमें अनेक प्रकार से अन्य उपाय सप्तमाध्ययनम् हिन्दीभाषाटीकासहितम् [291