________________ तहेव गंतु मुजाणं, पव्वयाणि वणाणि अ। रुक्खा महल्ल पेहाए, एवं भासिज्ज पन्नवं॥३०॥ तथैव गत्वा उद्यानं, पर्वतान् वनानि च। वृक्षान् महतः. प्रेक्ष्य, एवं भाषेत प्रज्ञावान्॥३०॥ .. पदार्थान्वयः- हतेव- इसी प्रकार उज्जाणं- उद्यान में पव्वयाणि- पर्वतों पर अ- तथा वणाणि-वनों में गंतुं-जाकर और वहां महल्ल-मोटे मोटे रुक्खा -वृक्षों को पेहाए-देख कर पनवंप्रज्ञावान् साधु, एवं-इस प्रकार भासिज-भाषण करे। मूलार्थ- तथैव कारणवश उद्यानों, पर्वतों तथा वनों में गया हुआ साधु, महाकाय वृक्षों को देख कर अग्रिम सूत्रोक्त रीति से निरवद्य भाषा भाषण करे। टीका- जब पूर्व गाथाओं में निषेध विधि प्रतिपादित है, तो इससे स्वतः एव ध्वनित हो जाता है कि, इस प्रकरण की विधान विधि भी अवश्यमेय होनी चाहिए। अतः इसी न्याय के आश्रित होकर अब सूत्र कर्ता जी, विधान विधि के विषय में कहते हैं। कोई महोदय कारण वशात् किसी वन, उद्यान एवं पर्वत आदि स्थानों में जाए और वहाँ बड़े-बड़े विस्तार वाले फल-फूलों से परिपूर्ण दर्शनीय आकृति वाले वृक्षों को देखे तब उस प्रज्ञावान् साधु को योग्य है कि, वह निरवद्य वाणी द्वारा अग्रिम परिपूर्ण सूत्रोक्त रीत्या वृक्षों के विषय में भाषण करे। उत्थानिका- अब सूत्रकार भाषण-विधि का वर्णन करते हैं :जाइमंता इमे रुक्खा, दीहवट्टा महालया।, पयायसाला वडिमा, वए दरिसणित्ति अ॥३१॥ जातिमन्त इमे वृक्षाः, दीर्घवृत्ताः महालयाः। प्रजातशाखाः विटपिनः, वदेत् दर्शनीया इति च॥३१॥ पदार्थान्वयः- इमे-ये रुक्खा-वृक्ष जाइमंता-उत्तम जाति वाले हैं दीह-दीर्घ हैं वट्टा-वृत्त हैं महालया-बड़े विस्तार वाले हैं पयायसाला-बड़ी-बड़ी फैली हुई शाखाओं वाले हैं वडिमा-छोटीछोटी शाखाओं वाले हैं तथा दरिसणित्ति-दर्शनीय हैं, इस प्रकार वए-बोले। ___ मूलार्थ- साधु को वृक्षों के विषय में 'ये वृक्ष उत्तम जाति वाले हैं, दीर्घ हैं, वृत्त हैं, विस्तार वाले हैं, शाखा वाले हैं एवं अतिदर्शनीय हैं' इस प्रकार शुद्ध भाषण करना चाहिए। टीका- पूर्वोक्त स्थानों में गए हुए साधु को, वृक्षों को देख कर इस प्रकार बोलना चाहिए कि ये अशोक आदि वृक्ष उत्तम जाति वाले हैं। ये नारियल आदि के वृक्ष दीर्घ हैं। (लंबे हैं) ये नंदी आदि वृक्ष गोलाकार (वृत्त) हैं तथा ये वट आदि वृक्ष बड़े विस्तार वाले हैं। ये बड़ी-बडी प्रलम्ब शाखाओं से तथा बड़ी शाखाओं से निकली हुई छोटी-छोटी शाखाओं से बहुत ही दर्शनीय हैं और देखने में सुन्दर लगते हैं। यहाँ एक बात और भी ध्यान में रखनी चाहिए कि, इस प्रकार भी किसी.प्रयोजन के कारण 286] हिन्दीभाषाटीकासहितम् * सप्तमाध्ययनम्