________________ अलं पासाय खंभाणं, तोरणाणि गिहाणि / फलिहग्गल नावाणं, अलं उदगदोणिणं॥२७॥ अलं प्रासाद-स्तंभयोः, तोरणानां गृहाणां च। परिघार्गलानावां , अलमुदकद्रोणीनाम् // 27 // पदार्थान्वयः- ये विशाल वृक्ष पासाय खंभाणं-प्रासाद और स्तंभ बनाने के अ-तथा तोरणाणिनगर द्वार बनाने के गिहाणी-नाना भाँति के घर बनाने तथा फलिहग्गल नावाणं-परिघ, अर्गला एवं नौका बनाने के अलं-योग्य हैं तथा उदगदोणिणं-उदक, द्रोणी, अरघट्टजलधारिका, बनाने के भी अल-योग्य हैं, इस प्रकार न कहे। ____ मूलार्थ- ये वृक्ष प्रासाद, स्तम्भ, तोरण, गृह, परिघ, अर्गला, नौका एवं उदकद्रोणी, डोंगी बनाने के योग्य हैं ऐसा साधु को कभी नहीं कहना चाहिए। टीका- पूर्वोक्त वनादि स्थानों में गया हुआ साधु, वहाँ बड़े बड़े वृक्षों को देखकर निम्न प्रकार से कभी न बोले। यथा-ये वृक्ष तो, एक स्तम्भ, प्रासाद (राज महल) तथा वृहत्स्तंभ बनाने के योग्य हैं, तोरण (नगर द्वार) वा गृहस्थों के सामान्य घर बनाने के योग्य हैं। नगर के द्वार की परिघा (अरली) और गोपुर कपारदि की अर्गला बनाने के योग्य है तथा इसी प्रकार बड़ी नाव और उदक द्रोणी बनाने के योग्य हैं। सूत्रोक्त 'उदक द्रोणी' शब्द प्रचलित रूप से तीन अर्थों में व्यवहृत होता है, अतः यहाँ ये तीनों ही अर्थ सूत्रकार के भावों से सम्मत हैं। किसी से भी सूत्रकार के भाव भंग नहीं होते। तीन अर्थ इस प्रकार हैं, एक तो अरहट की घट माला का जल जिस काष्ठ पात्र में गिर कर फिर नालिका द्वारा क्षेत्र में जाता है, उस काष्ठ पात्र को उदक द्रोणी कहते हैं। दूसरे अरहट के पानी भरने के जो काष्ठ घट होते हैं, उन्हें भी द्रोणी कहते हैं। तीसरे उदक द्रोणी शब्द का अर्थ छोटी नाव (डोंगी) लिया जाता है। उत्थानिका- यही विषय फिर और उदाहरणों द्वारा स्पष्ट किया जाता है :पीढए चंगबेरे (रा)अ, नंगले मइअं सिआ। जंतलट्ठी व नाभी वा, गंडिआ व अलं सिआ॥२८॥ पीठकाय चंगबेराय, लाङ्गलाय मयिकाय स्युः। यंत्रयष्टये वा नाभये वा, गण्डिकायै वा अलं स्युः॥२८॥ पदार्थान्वयः-ये वृक्ष पीढए-चौकी के लिए अ-तथा चंगबेरे-काष्ठ पात्र के लिए नंगले-हल के लिए तथा मइअं-बोये हुए बीजों को आच्छादन करने वाले मड़े के लिए व-अथवा जंतलट्ठी-किसी यंत्र की लकड़ी के लिए वा-अथवा नाभी- चक्र के पहिये की नाभि के लिए व-अथवा गंडिआसुर्वणकार आदि की ऐरण रखने की वस्तु विशेष के लिए अलंसिआ-पूर्ण योग्य हैं, ऐसा न कहे। मूलार्थ- पूर्वसूत्र की भाँति ही 'ये वृक्ष चौकी के लिए, चंगेरी काष्ठ पात्र के लिए, हल के लिए, सुहागे (बीजाछादक मड़े) के लिए, यंत्र यष्टी के लिए, शकटादि के चक्र के पहिये 284] हिन्दीभाषाटीकासहितम् सप्तमाध्ययनम्