________________ महल्लए वि-बड़े बैल को वृद्ध वृषभ एवं रथ योग्य बैल को संवहणित्ति-यह संवहन है, इस प्रकार साधु को निरवद्य वचन बूआ-बोलने चाहिए। मूलार्थ- यदि कभी कारण वश बोलना ही हो तो दोह्य गाय को दुग्धदा, दम्य वृषभ को युवा, छोटे वृषभ को लघु, वृद्ध वृषभ को वृद्ध एवं रथ योग्य वृषभ को संवहन आदि बोलना चाहिए। टीका- यदि कारणवशात् बोलना ही हो, तो निम्न प्रकार से बोलना चाहिए। जैसे कि, जो वृषभ युवा है उसे युवा ही कहना चाहिए, दमन करने योग्य नहीं। इसी प्रकार जो गाय नूतन प्रसूता है, उसे दध देने वाली कहना चाहिए तथा जो रथ को चला रहा है (वहन कर रहा है। उसे संवहन कहना चाहिए। जैसे कि, किसी ने रथ से खोल कर बैलों को अलग बाँध दिया तब उन बैलों को देख कर यही कहना चाहिए कि, ये इस रथ को खींचने वाले हैं तथा इस रथ को खींच रहे हैं, इस प्रकार बोलना चाहिए। तात्पर्य इतना ही है कि, जिस प्रकार जिन जीवों के विषय में बोला जाए, उन जीवों को किसी आपत्ति का सामना न करना पड़े, उसी प्रकार के शुद्ध वचन साधु को बोलने चाहिए। उत्थानिका- अब सूत्रकार, वनस्पति अधिकार के विषय में कहते हैं :तहेव गंतुमुज्जाणं, पव्वयाणि वणाणि अ। रुक्खा महल्ल पेहाए, नेवं भासिज पन्नवं // 26 // तथैव गत्वा उद्यानं, पर्वतान् वनानि च। वृक्षान् महतः प्रेक्ष्य, नैवं भाषेत प्रज्ञावान्॥२६॥ पदार्थान्वयः-तहेव-इसी प्रकार उजाणं-उद्यान में पव्वयाणि-पर्वतों पर अ-तथा वणाणिवनों में गंतुं-जाकर महल्ल-महाकाय रुक्खा -वृक्षों को पेहाए-देखकर पन्नवं-प्रज्ञावान् मुनि एवं-इस प्रकार न भासिज-भाषण न करे। ___ मूलार्थ-भाषा-विवेकी साधु, उद्यानों, पहाड़ों एवं वनों में जाकर, वहां विशालकाय वृक्षों को देखकर, वक्ष्यमाण रीति से सावध भाषा न बोले। . टीका-जहाँ पर लोग एकत्र होकर नाना प्रकार की क्रीड़ाएँ करते हैं, ऐसे जन क्रीड़ा स्थान उद्यानों में तथा जो नाना प्रकार के हरे भरे वृक्षों से विमण्डित रहते हैं, ऐसे रमणीय पर्वतों पर तथा जिनमें नाना जाति के छोटे बड़े वृक्ष हों ऐसे सघन वनों में जाकर प्रज्ञावान् साधु, यदि किन्हीं समुन्नत महाकाय वृक्षों को देखे, तो उन वृक्षों के विषय में अग्रिम सूत्र-त्रयी के अनुसार कभी नहीं बोलना चाहिए। इस प्रकरण के कथन का सारांश इतना ही है कि, विहारादि क्रियाएँ करते समय यदि कभी साधु का किसी उद्यान में, वन में तथा पर्वत पर जाना हो जाए, तो वहाँ बड़े-बड़े दीर्घकाय वृक्षों को देख कर साधु को सावधकारी भाषण नहीं करना चाहिए। क्योंकि हिंसा-युक्त भाषण से आत्मा मलिन होकर पतित हो जाती है। उत्थानिका- अब सूत्रकार, 'किस प्रकार भाषण नहीं करना चाहिए ?' इस शङ्का के समाधान में कहते हैं :सप्तमाध्ययनम् हिन्दीभाषाटीकासहितम् [283