________________ जाना पड़ जाता है। इसी प्रकार द्वितीय सूत्रोक्त होल, गोल, वसुल आदि शब्दों को भी प्रयोग में नहीं लाना चाहिए। क्योंकि, ये शब्द भी निन्दा एवं स्तुति के वाचक होने से दोषोत्पादक हैं। होल, गोल आदि शब्दों के विषय में विशेष वक्तव्य, पूर्व स्त्री प्रकरण की टीका में कह दिया है। अतः पाठक वहाँ देखने का कष्ट करें। पूर्व स्त्री प्रकरण में और इस पुरुष प्रकरण में जो यह शब्द सूची दी गई है, वह केवल सूचना मात्र है। अतः इसी प्रकार के अन्य शब्दों के विषय में भी स्वयं विचार कर लेना चाहिए। उत्थानिका- अब सूत्रकार, 'यदि इस प्रकार का कथन निषिद्ध है तो फिर किस प्रकार का उपादेय है ?' इस प्रश्न का उत्तर देते हैं : नामधिजेण णं बूआ, पुरिसगुत्तेण वा पुणो। जहारिहमभिगिज्झ , आलविज लविज वा॥२०॥ नामधेयेन तं ब्रूयात् , पुरु षगोत्रेण वा पुनः / यथार्हमभिगृह्य , आलपेत् लपेत् वा॥२०॥ पदार्थान्वयः- नामधिजेण-पुरुष के नाम से वा पुणो-अथवा पुरिसगुत्तेण-पुरुष के गोत्र से णं- उस पुरुष से बूआ- बोले तथा जहारिहं- यथा योग्य अभिगिज्झ-गुण दोषों का विचार कर आलविज-एक बार वा-अथवा लविज-बारंबार बोले। मूलार्थ- यदि कभी किसी पुरुष से बोलना हो तो, उसके प्रसिद्ध नाम से या उसके प्रसिद्ध गोत्र से या किस तदुचित सुन्दर शब्दों से गुण दोषों का विचार कर एक बार अथवा बारंबार बोलना चाहिए। ____टीका- साधु को जब कार्य-वश किसी गृहस्थ पुरुष से बातचीत करनी हो तो पुरुष के प्रसिद्ध शुभ नाम से तथा प्रसिद्ध शुभ गोत्र से अथवा अन्य किसी ऐसे ही सुन्दर शब्द से पहले हानिलाभ का, गुण-दोष का, पूर्णतया विचार करके ही बोलना चाहिए। सूत्रकार का यह आशय है कि, जो शब्द सभ्यता पूर्ण हों, शिष्ट जनोचित हों एवं श्रोता जनोचित हों या श्रोता जन को प्रिय प्रतीत होते हों, ऐसे- हे धर्म प्रिय ! हे श्रावक ! हे भद्र ! हे धार्मिक ! इत्यादि हृदयग्राही मधुर शब्दों के सम्बोधन से ही गृहस्थ से बात चीत करनी चाहिए क्योंकि, इस प्रकार के सभ्योचित शब्दों से वक्ता, श्रोता और तटस्थ सभी प्रसन्न रहते हैं और साथ ही इस से बोलने वाले साधु की योग्यता भी प्रकट होती है। . उत्थानिका- अब सूत्रकार, पंचेन्द्रिय, तिर्यञ्च, सम्बन्धी संशयात्मक भाषा के कथन का निषेध करते हैं। पंचिंदियाण पाणाणं, एस इत्थी अयं पुमं। जाव णं न विजाणिज्जा, ताव जाइत्ति आलवे॥२१॥ पंचेन्द्रियाणां प्राणिना, मेषा स्त्री अयं पुमान्। यावदेतद् न विजानीयात्, तावजातिरिति आलपेत् // 21 // पदार्थान्वयः- पंचिंदियाण-पंचेन्द्रिय पाणाणं-प्राणियों को दूर से देखकर जाव- जब तक सप्तमाध्ययनम् हिन्दीभाषाटीकासहितम् [279