________________ सम्बोधित करना चाहिए। यथा-हे वृद्धे, हे मध्यमे, हे धर्मशीले, हे सेठानी आदि। तात्पर्य यह है कि, साधु को उन्हीं शुद्ध संबोधन शब्दों से स्त्री को सम्बोधित करना चाहिए; जिस से सुनने वाली स्त्री को दुःख, लज्जा, संकोच आदि एवं जनता में अपनी अप्रतीति, निन्दा, लघुता आदि के भाव न हों। जिस पवित्रात्मा मुनि के भाव शुद्ध हों, उस को चाहिए कि, वह अपने भावों को प्रकाश करने के लिए 'वाक्य शुद्धि' की ओर विशेष ध्यान दे। इसी लिए सूत्र में लिखा है कि, साधु, प्रथम गुण वा दोषों को पूर्णतया विचार करके ही वचन बोले। उत्थानिका- अब सूत्रकार, स्त्री-अधिकार के अनन्तर पुरुष-अधिकार के विषय में कहते हैं : अज्जए पज्जए वावि, बप्पो चुल्लपिउत्ति अ। माउलो भाइणिज्जत्ति, पुत्ते णत्तुणिअत्ति अ॥१८॥ हे भो हलित्ति अन्नित्ति, भट्टे सामिअ गोमि। होल गोल वसुलित्ति, पुरिसं नेवमालवे॥१९॥ यु० आर्यकः प्रार्यकश्चाऽपि, पिता चुल्लपितेति च।। मातुलः भागिनेय इति, पुत्रः नप्ता इति च॥१८॥ हे भो हल इति अन्न इति, भट्ट इति स्वामिन् गोमिन्। होल गोल वसुल इति, पुरुषं नैवमालपेत्॥१९॥ पदार्थान्वयः- अजए- आर्यक पज्जए- प्रार्यक वावि- अथवा बप्पो- पिता अ- तथा चुल्लपिउत्ति-पितृव्य माउओ-मातुल भाइणिजति-भागिनेय पुत्ते-पुत्र अ-अथवा णत्तुणिअत्ति-पौत्र तथा हे-हे भो- भो हलित्ति- हल अन्नित्ति- अन्न भट्टे- भट्ट सामिअ-स्वामिन् गोमिअ-गोमिन् होल-होल गोल-गोल (जारज) वसुलित्ति-वसुल एवं-इस प्रकार मुनि-वृत्ति के अयोग्य शब्दों से मुनि पुरिसं-किसी भी गृहस्थ पुरुष को सम्बोधित करके न आलवे-वार्तालाप न करे। ____ मूलार्थ- लोक-व्यवहार-मर्मज्ञ, विचारवान् साधु को, पुरुष के साथ भी, आर्यक, प्रार्यक, पिता, चाचा, मामा, भानजा, पुत्र, पौत्र, हल, अन्न, भट्ट, स्वामिन्, गोमिन्, होल, गोल, वसुल, इत्यादि राग-वर्द्धक और द्वेष-वर्द्धक अयोग्य सम्बोधनों से वार्तालाप नहीं करना चाहिए। ___टीका- यदि कभी किसी गृहस्थ पुरुष के साथ साधु को वार्तालाप करने का प्रसंग हो तो, साधु को योग्य है कि, वह प्रथम सूत्रोक्त सांसारिक सम्बोधनों से उसके साथ बात न करे। यथा- हे आर्यक (दादा), हे प्रार्यक (पड़दादा), हे पितः (पिता), हे चुल्लपितः (चाचा), हे मातुल (मामा), हे शागिनेय (भानजा), हे पुत्र, हे पौत्र- इत्यादि। कारण यह कि, इस प्रकार बोलने से औदयिक भाव के उदय होने का विशेष प्रसंग रहता है, जिससे अन्ततोगत्वा कभी सच्ची साधुता से ही हाथ धोकर बैठ 278] हिन्दीभाषाटीकासहितम् सप्तमाध्ययनम्