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________________ बूआ ! हे भाणजी ! हे पुत्री ! हे पोत्री ! हे हले हले ! हे अन्ने ! हे भट्टे ! हे स्वामिनि ! हे गोमिनि ! हे होले-! हे गोले ! हे वसुले इत्यादि निन्दित शब्दों से बातचीत नहीं करनी चाहिए। टीका- इस गाथा-युग्म में इस बात का प्रकाश किया गया है कि, यदि किसी समय किसी साधु को किसी स्त्री के साथ वार्तालाप करना पड़ जाए तो उस स्त्री को निम्नलिखित संबोधनों द्वारा आमंत्रित नहीं करना चाहिए। यथा-हे आर्जिके (दादी तथा नानी), हे प्रार्जिके (पड़दादी तथा पड़नानी), हे अम्ब (माता), हे मातृष्वसः (मौसी), हे पितृष्वसः (पिता की बहन) हे भागिनेयि (भाणजी), हे दुहितः (पुत्री), हे नजि (पोती), हे हले हले (सखी के प्रति आमंत्रण), हे अन्ने (नीच सम्बोधन विशेष), हे भट्टे (भाटण), हे स्वामिनि (मालकिन), हे गोमिनि-(गाय वाली-संबोधन विशेष), हे होले (गँवारिन), हे गोले (जारजादासी), हे वसुले (छिनाल), ये शब्द सूत्रकार ने उदाहरण रूप से कह दिए हैं। अस्त इसी प्रकार के आधुनिक समय के प्राचीन अन्य शब्द भी स्वबुद्धया जान लेने चाहिए। इन शब्दों के प्रयोग न करने का कारण यह है कि इनमें कई शब्द सांसारिक सम्बन्ध के सूचक हैं, यथा-आर्जिका, प्रार्जिका आदि। कई शब्द काम राग के सूचक हैं, यथा-हे हले हले आदि। कई शब्द प्रशंसा के सूचक हैं, यथा हे भट्टे आदि। कई शब्द निन्दा के सूचक हैं, यथा हे होल आदि। कई शब्द निर्लज्जता के सूचक हैं यथा हे गोल आदि। अस्तु अनुराग, अप्रीति एवं प्रवचन लघुता आदि दोषों के कारण से इन शब्दों को भूल कर भी प्रयोग में नहीं लाना चाहिए। सूत्रगत 'होले, गोले, गोमिणि' आदि शब्द नाना देशों की अपेक्षा से कहे गए हैं अर्थात् किसी देश में कोई शब्द प्रचलित है तो किसी देश में कोई शब्द प्रचलित है। ___उत्थानिका- अब सूत्रकार, 'यदि इस प्रकार कथन का निषेध है तो फिर किस प्रकार कथन करना चाहिए ?' इस प्रश्न के उत्तर में कहते हैं : नामधिज्जेण णं बूआ, इत्थी गुत्तेण वा पुणो। जहारिहमभिगिज्झ , आलविज लविज्ज वा॥१७॥ नामधेयेन तां ब्रूयात्, स्त्री-गोत्रेण वा पुनः। यथारीमभिगृह्य , आलपेत् लपेत् वा॥१७॥ पदार्थान्वयः-णं-उस स्त्री से नामधिजेण-नाम से बुआ-बोले वा पुणो-अथवा इत्थी गुत्तेण-उसी स्त्री का जो गोत्र हो उससे बोले जहारिहं-यथा योग्य अपेक्षा से अभिगिज्झ-गुण दोष का विचार कर आलविज-एक बार बोले वा-अथवा लविज्ज-बारंबार बोले। मूलार्थ- यदि कभी किसी कारण से साधु को, स्त्री से बोलना पड़े तो उसके प्रसिद्ध नाम से या उसके प्रसिद्ध गोत्र से या यथायोग्य अन्य किसी सुन्दर शब्द से गुण-दोष को विचार कर एक बार अथवा बारंबार बोले। टीका- इस गाथा में इस बात का प्रकाश किया गया है कि, यदि कभी किसी स्त्री को सम्बोधित करना हो तो, निम्न प्रकार से सम्बोधित करना चाहिए। उस स्त्री का जो शुभ नाम हो, उस नाम से बोलना चाहिए। यथा देवदत्ता, मंगला, कल्याणी आदि तथा उस स्त्री का जो गोत्र हो, उससे बोलना चाहिए। यथा-काश्यपी, गौतमी आदि अथवा यथायोग्य वय, देश, ईश्वरता आदि की अपेक्षा से सप्तमाध्ययनम् हिन्दीभाषाटीकासहितम् [277
SR No.004497
Book TitleDashvaikalaik Sutram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAatmaramji Maharaj, Shivmuni
PublisherAatm Gyan Shraman Shiv Agam Prakashan Samiti
Publication Year2003
Total Pages560
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashvaikalik
File Size12 MB
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