________________ पदार्थान्वयः- तहेव- इसी प्रकार अमुल पुरुष होले- होल है तथा गोलित्ति- गोल है वातथा साणे- श्वान है अ- तथा वसुलित्ति- वसुल है तथा दमए- द्रमक है वावि- अथवा दुहए- दुर्भग है, एवं- इस प्रकार पन्नवं- प्रज्ञावान् साधु न भासिज्ज- भाषण न करे। मूलार्थ- इसी प्रकार बुद्धिमान् साधु , हे होल ! हे गोल ! हे कुक्कुर ! हे वसुल! हे द्रमक ! हे दुर्भग ! इत्यादि कठोर वाक्य कभी भी न बोले। टीका- बुद्धिमान् साधु को चाहिए कि, जिस देश में, जो जो नीचता के सूचक शब्द, संबोधन करने में आते हैं; उन शब्दों से स्वयं किसी को सम्बोधित न करे, न किसी दूसरे से करवाए और न अन्य करने वालों को अच्छा समझे। जैसे- हे होल ! हे गोल ! हे कुत्ते ! हे वसुल ! हे द्रमक ! हे दुर्भग ! इत्यादि नीच शब्दों से किसी को सम्बोधित नहीं करना चाहिए। ये होल आदि शब्द उस उस देश प्रसिद्धि से निष्ठुरता आदि के वाचक हैं। तात्पर्य यह है कि, जो शब्द कठिन हों वा निर्लज्जता के सूचक हों, उन शब्दों द्वारा कदापि किसी को निमन्त्रित नहीं करना चाहिए। उत्थानिका- अब सूत्रकार, स्त्री-पुरुष का सामान्य रूप से प्रतिषेध करने के अनन्तर, केवल स्त्री के ही अधिकार का विशद रूप से वर्णन करते हैं :- - अजिए पज्जिए वावि, अम्मो माउसिअत्ति अ। पिउस्सिए भायणिजत्ति, धूए णत्तुणिअत्ति अ॥१५॥ हले हलित्ति अन्निति, भट्टे सामिणि गोमिणि। होले गोले वसुलित्ति, इत्थिअं नेव मालवे॥१६॥ यु० आर्जिके प्रार्जिके वाऽपि, अम्ब मातृष्वस इति च। / पितृष्वसः भागिनेयीति, दुहितः नत्रीति ,च॥१५॥ हले हले इति अन्ने इति, भट्टे स्वामिनि गोमिनि। होले गोले वसुले इति, स्त्रियं नैवमालपेत्॥१६॥ पदार्थान्वयः- अज्जिए- हे आर्जिके अथवा पज्जिए- हे प्रार्जिके वावि- अथवा अम्मो- हे अम्ब अ- अथवा माउसिअत्ति- हे मौसी अथवा पिउस्सिए- हे बूआ अथवा भायणिजत्ति- हे भानजी अथवा धूए- हे पुत्री अ- अथवा णत्तुणिअत्ति- हे पौत्री हले हलेत्ति- हे हले हले अथवा अन्नित्ति- हे अन्ने अथवा भट्टे- हे भट्टे अथवा सामिणि- हे स्वामिनी गोमिणि- हे गोमिनी अथवा होले- हे होले गोले- हे गोले वसुलित्ति- हे वसुले एवं- इस प्रकार के सम्बोधन वचनों से साधु इत्थिग्रं- स्त्री से न आलवेबातचीत न करे। मूलार्थ- विद्वान् साधु को स्त्री के साथ हे आर्जिके ! हे प्रार्जिके ! हे अम्ब ! हे मौसी ! हे 276] हिन्दीभाषाटीकासहितम् सप्तमाध्ययनम्