________________ उत्थानिका- अब सूत्रकार, कठोर भाषा में बोलने का निषेध करते हैं :तहेव . फरुसा भासा, गुरुभूओवघाइणी / सच्चा वि सा न वत्तव्वा, जओ पावस्स आगमो॥११॥ तथैव परुषा भाषा, गुरुभूतोपघातिनी / सत्यापि सा न वक्तव्या, यतः पापस्यागमः॥११॥ पदार्थान्वयः- तहेव-इसी प्रकार जो भासा-भाषा फरूसा-कठोर हो तथा गुरुभूअोवघाइणीबहुत प्राणियों की उपघात करने वाली हो सा-वह सच्चावि-सत्य होने पर भी न वत्तव्वा-अवक्तव्य है जओ-क्योंकि, ऐसी भाषा से पावस्स-पाप कर्म का आगमो-आगम होता है। . मूलार्थ- इसी प्रकार जो भाषा कठोर (निष्ठुर) हो, बहु प्राणी विघातक हो, यदि वह सत्य भी हो; तो भी नहीं बोलनी चाहिए। क्योंकि, यह भाषा पाप कर्म का बंध करने वाली है। टीका- इस गाथा में जो भाषा भाषण करने योग्य नहीं है, उस के विषय में निषेधात्मक प्रतिपादन किया गया है। जो भाषा स्नेह की कोमलता से रहित होने के कारण कठिन है, नाना प्रकार के सूक्ष्म स्थूल आदि बहुत से प्राणियों का नाश करने वाली है, वह सच्ची होने पर भी भाषण करने योग्य नहीं है। क्योंकि वह भाषा बाह्यार्थ की अपेक्षा सच्ची मालूम होती है, परन्तु वस्तुतः भावार्थ की अपेक्षा से उसका पूर्णतः असत्य स्वरूप है। जैसे किसी दास्यकर्म में निरत (लगे हुए) कुल-पुत्र को लोगों के समक्ष दास कहना 'जिस प्रकार असत्य भाषा के बोलने से पाप कर्म का बंध होता है, ठीक उसी प्रकार' इस भाषा के बोलने से भी पापकर्म का बंध होता है। अत: मुनि-धर्म में यह सर्वथा त्याज्य है। उत्थानिका- अब सूत्रकार, उदाहरणों द्वारा फिर इसी विषय को स्पष्ट करते हैं :तहेव काणं काणत्ति, पंडगं पंडगत्ति वा। . वाहि वावि रोगित्ति, तेणं चोरत्ति नो वए॥१२॥ तथैव काणं काण इति, पण्डकं पण्डक इति वा। व्याधितं वाऽपि रोगीति, स्तेनं चोर इति नो वदेत्॥१२॥ पदार्थान्वयः- तहेव-उसी प्रकार काणां-काने को काणति-यह काना हैं वा-तथा पंडगंनपुंसक को पंडगति-यह नपुंसक है वावि-तथा वाहिअं-रोगी को रोगित्ति-यह रोगी है तथा तेणंचोर को चोरत्ति-यह चोर है। इस प्रकार नो वए-नहीं कहे। ____ मूलार्थ- इसी प्रकार विश्व-प्रेमी साधु, काने को काना, नुपंसक को नपुंसक, रोगी को रोगी एवं चोर को चोर भी न कहे। ___टीका- इस गाथा में इस बात का प्रकाश किया गया है कि, जो भाषा सत्य तो अवश्य है, किन्तु जिनके प्रति वह कही जाती है, उन सुनने वालों के हृदयों को दुःख पहुँचाने वाली है। इसलिए वह दुःखोत्पादक भाषा साधु को कदापि भाषण नहीं करनी चाहिए। जैसे किसी कारण से किसी व्यक्ति 274] हिन्दीभाषाटीकासहितम् सप्तमाध्ययनम्