________________ चाहिए ? अन्ततः अपना विचार तो कहना ही होता है ? उत्तर में कहना है कि, हर समय इस प्रकार बोलते हुए 'व्यवहार' शब्द का प्रयोग अवश्य करते रहना चाहिए। क्योंकि व्यवहार शब्द के प्रयोग से भाषा फिर निश्चयकारिणी नहीं रहती। उसका केवल यही अर्थ हो जाता है कि, उस समय इस प्रकार के भाव थे। किन्तु स्पर्शना न होने से वे भाव तद्वत् न हो सके। सूत्रकार का स्पष्ट आशय यह है कि, साधु को हर समय बोलते हुए द्रव्य, क्षेत्र, काल एवं भाव को मध्य में रखना चाहिए, ताकि भाषा की विशेष रूप से शुद्धि हो सके। भाषा शुद्धि से ही आत्म-शुद्धि है। अतः साधु को इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए। उत्थानिका-अब सूत्रकार, फिर इसी विषय को स्पष्ट करते हैं :अइअंमि अ कालंमि, पच्चुप्पण्णमणागए। जमटुं तु न जाणिज्जा, एवमेअंति नो वए॥८॥ अतीते च काले, प्रत्युत्पन्नेऽनागते / यमर्थं तु न जानीयात्, एवमेतदिति न वदेत् // 8 // पदार्थान्वयः- अइअंमि कालंमि- अतीतकाल सम्बन्धी अ- तथा पच्चुप्प-ण्णमणागएवर्तमानकाल और भविष्यत्काल सम्बन्धी जं-जिस अटुं-अर्थ या वस्तु को न जाणिञ्जा-नहीं जानता हो तु-तो उसको एवमेअंति-यह वस्तु ऐसी ही है इस प्रकार नोवए-नहीं बोलना चाहिए। मूलार्थ- अतीत काल, वर्तमान काल तथा अनागत (भविष्यत्) काल सम्बन्धी जिस पदार्थ के स्वरूप को नहीं जानता हो तो, उसके विषय में 'यह ऐसा ही है' इस प्रकार कदापि साधु को कथन नहीं करना चाहिए। ____टीका- अतीत काल में जो पदार्थ हो चुके हैं, वर्तमान काल में जो हो रहे हैं तथा अनागत काल में जो होंगे, उन पदार्थों के स्वरूप को यदि साधु सम्यक्तया न जानता हो, तो उन पदार्थों के विषय में निश्चयात्मक भाषण कभी न करे। जैसे कि, अमुक पदार्थ अमुक काल में इसी प्रकार हुआ था। इसी प्रकार वर्तमान और भविष्यत्काल सम्बन्धी भी जान लेना चाहिए। क्योंकि अबोध दशा में बोलने से नाना प्रकार के उपद्रव समुपस्थित हो जाते हैं। इसीलिए सूत्रकर्ता ने यह अज्ञात भाषण का निषेध किया है। उत्थानिका- अब सूत्रकार, फिर इसी विषय को दूसरे शब्दों में कथन करते अइअंमि अ कालंमि, पच्चुप्पण्णमणागए। जत्थ संका भवे तं तु, एवमेअंति नो वए॥९॥ अतीते च काले, प्रत्युत्पन्नेऽनागते / यत्र शंका भवेत् तत् तु, एवमेतदिति नोवदेत्॥९॥ .. 272] हिन्दीभाषाटीकासहितम् सप्तमाध्ययनम