________________ तस्माद् गमिष्यामो वक्ष्यामः, अमुकं वा नः भविष्यति। अहं वा तत् करिष्यामि, एष वा तत् करिष्यति॥६॥ एवमाद्या तु या भाषा, एष्यत्काले शङ्किता। साम्प्रतातीतार्थयोर्वा , तामपि धीरो विवर्जयेत्॥७॥ पदार्थान्वयः- तम्हा-इसी पाप बंध के कारण से गच्छामो-कल हम अवश्य जाएँगे वक्खामोव्याख्यान करेंगे वा-अथवा णे-हमारा अमुग-अमुक कार्य भविस्सइ-होगा वा-अथवा अहं-मैं णंयह कार्य करिस्सामि-करूँगा वा-अथवा एसो- यह साधु णं- हमारा यह कार्य करिस्सइ-करेगा। एवमाइउ-इत्यादि भासा-भाषा जा-जो एसकालंमि-भविष्यत् काल में वा-अथवा संपयाइअमटेवर्तमान काल में अथवा अतीत काल में संकिया-शङ्कित हो तंपि-ऐसी भाषा को भी धीरो-धैर्यवान् साधु विवज्जए-विशेष रूप से वर्ज दे। मूलार्थ- इसी पापबंध के कारण से बुद्धिमान् साधु, 'कल हम अवश्य जाएँगे या व्याख्यान देंगे, हमारा अमुक कार्य होगा, मैं अमुक कार्य करूँगा अथवा यह साधु मेरा अमुक कार्य करेगा' इत्यादि भाषाएँ 'जो भविष्यत् काल, वर्तमान काल एवं अतीत काल से सम्बन्ध रखती हों. और शक्ति हों उन्हें कदापि भाषण न करे। टीका-इस सूत्र-युग्म में निश्चय-कारिणी भाषा के बोलने का निषेध किया गया है। जैसे कि, कल हम यहाँ से अवश्य ही अमुक स्थान पर जाएँगे। कल हम वहाँ अवश्य व्याख्यान देंगे। अब हमारा अमुक कार्य अवश्य संपन्न हो जाएगा। कुछ भी हो, मैं कल केश लोच आदि कार्य अवश्य करूँगा इत्यादि निश्चयात्मक वचन साधु को कदापि नहीं बोलने चाहिए। इन वचनों से सत्याकार असत्य को * सत्य कहने के अनुसार पाप कर्म का बंध होता है। अब यह प्रश्न होता है कि, ऐसे निश्चयात्मक वचन क्यों नहीं बोलने चाहिए, इस प्रकार बोलने में क्या आपत्तियाँ हैं ? मनुष्य अपने निश्चय के अनुसार ही काम करता है। क्या किसी भी कार्य के लिए निश्चय न करके सब दिन संयम के चक्कर में ही पड़ा रहे ? इस प्रश्न के उत्तर में सूत्रकार कहते हैं कि, ऐसा निश्चय करना बुरा नहीं है। परन्तु ऐसे विषय का अनुचित प्रकार से असामयिक प्रकाशन करना श्रेयस्कर नहीं है। क्योंकि, भगवान् महावीर का कहना है, जो बात भविष्यत्काल में होने वाली है या वर्तमान काल में हो रही है एवं अतीत काल में हो चुकी है यदि वह शङ्कित हो तो उसे कभी नहीं बोलना चाहिए। कारण कि, इस प्रकार बोलने से जिन-शासन की लघुता होती है और अपने विषय में लोगों को अविश्वास होता है। लोग कहेंगे कि, देखो यह कैसा जैनी साधु है, जो अपनी इच्छानुसार अप्रासंगिक बातें कहता है। इसकी तो वाणी भी वश में नहीं है। अब प्रश्न यह होता है कि, यदि इस प्रकार कथन नहीं करना है तो फिर किस प्रकार कथन करना 1. भविष्यत्काल में यह कार्य अवश्यमेव ऐसा होगा, किन्तु भविष्य अन्धकारमय है। न मालूम क्या विघ्न हो जाए, काम पूरा न हो और झूठा बनना पड़ जाए। वर्तमान काल में पुरुष वेष-धारिणी स्त्री को यह पुरुष ही है, ऐसा कहना और अतीत काल (भूत काल) में जिस का निर्णय ठीक नहीं हुआ है, यथा यह बैल है या गाय है-ऐसे शङ्कित विषय को वह गाय ही थी या बैल था, ऐसा कहना। इस प्रकार तीन काल से सम्बन्ध रखने वाली शङ्का युक्त सभी भाषाओं का साधु प्रयोग न करे। सप्तमाध्ययनम् हिन्दीभाषाटीकासहितम् [271