________________ तसकायं न हिंसंति, मणसा वयसा कायसा। तिविहेण करणजोएण, संजया सुसमाहिआ॥४४॥ त्रसकायं न हिंसन्ति,मनसा वचसा कायेन। त्रिविधेन करणयोगेन, संयताः सुसमाहिताः॥४४॥ पदार्थान्वयः- सुसमाहिआ-श्रेष्ठ-समाधि वाले संजया-साधु मणसा-मन से वयसावचन से कायसा- काय से तिविहेण करणजोएण-तीन करण और तीन योग से तससायं-त्रस काय की न हिंसन्ति-हिंसा नहीं कर मूलार्थ-जिनकी पवित्र आत्मा सर्वतोभावेन शान्त है, ऐसे साधमन, वचन और शरीर से एवं कृत, कारित और अनुमोदन से कभी भी त्रस-काय की हिंसा नहीं करते। टीका-इस सूत्र में ग्यारहवें स्थान के पश्चात् बारहवें स्थान के विषय में कथन किया है। श्रेष्ठ समाधि वाले साधु, तीन करण और तीन योग से न तो स्वयं त्रस-काय के जीवों की हिंसा करते हैं, न औरों से हिंसा करवाते हैं तथा जो अन्य लोग त्रस-काय के जीवों की हिंसा करते हैं, उनकी अनुमोदना भी नहीं करते हैं। इसी लिए वे मुनि पूर्णतया अहिंसा-वृत्ति का पालन करने से सुसमाहितात्मा और समाधिस्थ होते हैं। कारण यह है कि, जिनकी आत्मा वैरविरोध से रहित होती है, वस्तुतः उन्हीं को आत्म-ध्यान में तल्लीनता प्राप्त होती है, औरों को नहीं। यहाँ प्रश्न होता है कि, त्रस-काय किसे कहते हैं ? इसका समाधान यह है कि, जो जीव चलते फिरते दृष्टिगोचर होते हैं , यथा द्वीन्द्रिय जीव, त्रीन्द्रिय जीव, चतुरिन्द्रिय जीव, और पंचेन्द्रिय जीव, इन सब जीवों की त्रस संज्ञा है। उत्थानिका- अब आचार्य, फिर इसी अधिकार का स्पष्टीकरण करते हैंतसकायं विहिंसंतो, हिंसइ उ तयस्सिए। तसे अ विविहे पाणे, चक्खुसे अ अचक्खुसे॥४५।। त्रसकायं विहिंसन् , हिनस्ति तु तदाश्रितान्। वसांश्च विविधान् प्राणिनः, चाक्षुषांश्चाचाक्षुषान् // 45 // पदार्थान्वयः- तसकायं-त्रस-काय की विहिंसंतो-हिंसा करता हुआ तयस्सिएतदाश्रित तसे-त्रस अ-और विविहेपाणे-नाना प्रकार के स्थावर प्राणी तथा चक्खुसे-चाक्षुष अऔर अक्खु से-अचाक्षुष सभी जीवों की हिंसइ उ -हिंसा करता है।। . मूलार्थ- त्रस-काय की हिंसा करता हुआ प्राणी, उसके आश्रित होकर रहने वाले त्रस-स्थावर, सूक्ष्म-स्थूल आदि अन्य जीवों की भी हिंसा करता है। टीका-त्रस-काय के जीवों की हिंसा करने से तदाश्रित त्रस-स्थावर, सूक्ष्म-वादर, चाक्षुष-अचाक्षुष जो भी जीव होते हैं, उन सभी जीवों की हिंसा हो जाती है। अतएव त्रस 1. यह वस्तुतः व्यवहार लक्षण है / निश्चय लक्षण तो यह है कि, जो जीव त्रस नाम कर्मोदय से होते हैं, वे त्रस कहलाते हैं और जो जीव स्थावर नाम कर्मोदय से होते हैं , वे स्थावर कहलाते हैं। - संपादक षष्ठाध्ययनम्] हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [247