________________ टीका-नवम स्थान के कथन के पश्चात्, अब दशम स्थान का वर्णन करते हुए कहते हैं कि, श्री तीर्थंकर देव जिस प्रकार अनिकाय के समारम्भ को पाप बहुल मानते हैं, इसी प्रकार वायु-काय के समारम्भ को भी मानते हैं। अतएव जो षट्-काय के संरक्षक मुनि हैं, उन्हें वायुकाय के समारम्भ का सेवन कदापि नहीं करना चाहिए। क्योंकि. जो मनि प्राणिमात्र के रक्षक हैं. वे वस्त्र स्फोटनादि क्रियाओं द्वारा वायु-काय का संहार कैसे कर सकते हैं ? यहाँ एक बात ध्यान देने योग्य यह है कि, जिस प्रकार पृथ्वी-काय आदि के स्व-काय और पर-काय दोनों शस्त्र हैं, उसी प्रकार वायु-काय के नहीं हैं। वायु-काय का प्रायः स्व-काय शस्त्र है अर्थात् वायु-काय का शस्त्र वायु-काय ही अधिक है। इसीलिए सूत्रकार ने इस के लिए सावज्जबहुलं"सावद्यबहुलं' का विशेषण देकर इस का परित्याग बतलाया है। सूत्र में जो 'बुद्धा' शब्द दिया हुआ है, उस का यह भाव है कि आप्तप्रणीत शास्त्र वा आप्त-वाक्य ही प्रमाण होते हैं। यह शास्त्र भी आप्त वाक्य रूप होने से प्रमाण है। उत्थानिका- अब आचार्य, 'इसी विषय को स्पष्ट करते हुए' फिर कथन करते तालिअंटेण पत्तेण, साहा विहुअणेण वा। न ते वीइउमिच्छंति, वीआवेउण वा परं॥३८॥ तालवृन्तेन पत्रेण, शाखा - विधूननेन वा। न ते वीजितुमिच्छन्ति, वीजयितुं वा परम्॥३८॥ पदार्थान्वयः-ते-वे साधु तालिअंटेण-ताल के पंखे से पत्तेण-पत्र से वा-अथवा साहाविहुअणेण-वृक्ष की शाखा से वीइउं-पंखा करने को (हवा करने को) नइच्छंति-न स्वयं चाहते वा-और परं-न दूसरों से वीआवेउण-करवाना चाहते हैं, उपलक्षण से अनुमोदना भी नहीं करते हैं। . मूलार्थ-सभी जीवों के कल्याण की कामना करने वाले मुनि, ताल-वृंत के पंखे से. पत्र से. वक्ष की शाखा से. हवा न तो स्वयं करना चाहते और न दसरों से कराना चाहते हैं तथा अपने आप करने वाले दूसरों की अनुमोदना भी नहीं करते हैं। टीका-इस गाथा में इस बात का प्रकाश किया गया है कि, जो उत्तम साधु हैं, वे ताल के पंखे से, पत्र से, पत्रों के समूह से अथवा किसी वृक्ष की शुष्क शाखा से न तो स्वयं वायु का सेवन करते हैं और न दूसरों से कह कर वायु का सेवन कराते हैं तथा जो अन्य पुरुष पंखा आदि से वायु सेवन करते हैं, उनकी अनुमोदना भी नहीं करते हैं। कारण यह है कि, प्रायः वायु काय के द्वारा ही वायु काय की हिंसा होती है। अतः जिसने प्राणिमात्र के साथ मैत्री का हाथ बढ़ाया है, वह किसी को दुःख किस प्रकार पहुँचा सकता है ? ___ उत्थानिका- अब आचार्य, उपकरणों द्वारा भी वायु-काय की हिंसा नहीं करने के षष्ठाध्ययनम्] हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [243