________________ स. क्षुल्लकव्यक्तानां, व्याधितानां च ये गुणाः। अखण्डास्फुटिताः कर्तव्याः, तान् श्रृणुत यथा तथा॥६॥ पदार्थान्वयः-जे-ये वक्ष्यमाण गुणा-गुण अर्थात्-नियम सखुड्डुग्गविय -त्ताणंसभी बालकों एवं वृद्धों को वाहियाणं च-अस्वस्थों एवं स्वस्थों को अखंड-फुडिया-अखण्ड एवं अस्फुटित रूप से कायव्वा-धारण करने चाहिएं तं-वे गुण जहा-जिस प्रकार हैं तहा-उसी प्रकार मुझ से सुणेह-श्रवण करो। मलार्थ-अयि भव्यो ! जैन-साधुओं के ये वक्ष्यमाण नियम, बालक, वृद्ध, व्याधिग्रस्त एवं सर्वथा स्वस्थ, सभी व्यक्तियों को एक-रूप से अखण्ड एवं अस्फुटित पालन करने होते हैं। सो तुम हमारे साधु-संघ की यह उग्र नियमावली जैसी है उसको ध्यान पूर्वक मुझ से श्रवण करो। टीका-इस गाथा में इस बात का प्रकाश किया है कि, तीर्थंकर-देवों ने जो साध्वाचार प्रतिपादन किया है, वह सभी साधुओं के लिए सामान्य रूप से प्रतिपादन किया है। किसी के लिए न्यूनता और अधिकता से नहीं, क्योंकि जैन-शासन में मुँह देख टीका करने की पद्धति को थोड़ा भी स्थान नहीं है। यहाँ जो बात है वह स्पष्ट है और सभी के लिए एक समान है। अतएव व्याख्याता आचार्य जी ने प्रश्र-कर्ताओं से कहा कि, साधु-पद-वाच्य-आत्मार्थी सज्जन, बालक, वृद्ध, व्याधि-ग्रस्त एवं स्वस्थ आदि को किसी भी अवस्था में क्यों न हो' अपने गुण पूर्ण रूप से देश-विराधना तथा सर्व-विराधना से रहित धारण करने चाहिएँ, क्योंकि जो वीर सांसारिक सुखों को लात मार कर साधुता के क्षेत्र में निर्भय एवं निरुद्वेग खड़े हो गए हैं, वे फिर चाहे बालक हों, वृद्ध हों, रोगी हों, निरोग हों अर्थात्-कोई भी हों, उन्हें साधु-वृत्ति के नियम सर्वथा शुद्धता-पूर्वक ही पालन करने समुचित हैं। सूत्रगत 'अखण्ड' शब्द देश-विराधना रहित अर्थ में और 'अस्फुटित' शब्द सर्व-विराधना रहित अर्थ में व्यवहृत है। उत्थानिका- अब आचार्य, 'व्याख्येय अष्टादश-गुणों के पालन में ही साधुत्व है, अन्यथा नहीं।' इस विषय में कहते हैं: दस अट्ठ य ठाणाई, जाइं बालोऽवरज्झइ। तत्थ अन्नयरे ठाणे, निग्गंथत्ताओ भस्सइ॥७॥ दशाष्टौ स्थानानि, यानि बालोऽपराध्यति। तत्रान्यतरस्मिन् स्थाने, निर्ग्रन्थत्वात् भ्रश्यति // 7 // पदार्थान्वयः- बालो-जो अज्ञानी-साधु जाइं-इन दस अट्ठ य ठाणाइं-अष्टादश स्थानकों का अवरज्झइ-अपराध करता है तथा तत्थ-उन अष्टादश स्थानकों में से अन्नयरे ठाणेकिसी भी एक स्थानक में प्रमाद से वर्तता है वह निग्गंथत्ताओ-निर्ग्रन्थता से भस्सइ-भ्रष्ट हो जाता है। षष्ठाध्ययनम्] हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [219