________________ टीका- इस गाथा में भी फलों का ही वर्णन किया गया है। जैसे कि, कपित्थ फल, बीज पूरक फल, मूलक सपत्र और मूल कर्तिका-मूल कन्द, यदि वे सब कच्चे हो, स्वकाय तथा परकाय शस्त्र से अपरिणत हों अर्थात् अचित्त नहीं हुए हों तो साधु इनके ग्रहण करने की मन से भी इच्छा न करे। यहाँ शास्त्रकार ने फलों का वर्णन करते हुए जो साथ ही 'मूलगं' और 'मूलगत्तिअं' . .शब्दों का उल्लेख किया है, वह कन्द-मूल अनंतकाय पदार्थों के गुरुत्व का द्योतक है। कन्द-मूल अनंत जीवनात्मक होते हैं। अतः प्रत्येक वनस्पति फल मूल आदि की अपेक्षा, साधारण वनस्पति कन्द-मूल के भोजन में अत्यधिक पाप है। यद्यपि यहाँ पर कच्चा और अशस्त्र-परिणत पाठ है तथापि धार्मिक जनता को बहुत पाप समझकर कन्द-मूल का सब प्रकार से परित्याग करना ही श्रेयस्कर है तथा श्रावक-वर्ग को तो, विशेषतया कन्द-मूल के भक्षण का परित्याग करना चाहिए। उत्थानिका- अब सूत्रकार, सचित्त फलादि चूर्णों के विषय में कहते हैंतहेव फलमंथूणि, बीयमंथूणि जाणिया। विहेलगं पियालंच, आमगं परिवज्जए॥२६॥ तथैव फलमन्थून्, बीजमन्थून् ज्ञात्वा। बिभीतकं प्रियालं च, आमकं परिवर्जयेत्॥२६॥ पदार्थान्वयः-तहेव-उसी प्रकार फलमंथूणि-बदरी-फल आदि का चूर्ण बीयमंथूणियव आदि का चूर्ण बिलेहलगं-बिभीतक फल च-तथा पियालं-प्रियाल का फल इन सब को शास्त्र विधि से सम्यक्तया आमगं-कच्चा सचित्त जाणिया-जानकर परिवज्जए-वर्ज दे। मूलार्थ- इसी तरह भावितात्मा मुनि, बेर आदि फलों के चूर्ण और जौं आदि बीजों के चूर्ण, बिभीतक और प्रियाल फल आदि को शास्त्रोक्त विधि से कच्चे जान कर ग्रहण न करे। टीका-इस गाथा में चूर्णों के विषय में प्रतिपादन किया गया है। जैसे कि, बदरीफल का चूर्ण (आटा), यव आदि बीजों का चूर्ण, विभीतक फल (बहेड़ा का फल) और प्रियाल फल आदि जो सचित्त हैं अर्थात् कच्चे हैं, उन सब को मुनि छोड़ दे अर्थात् ग्रहण न करे। सूत्रकार ने नाम ले लेकर, बार-बार जो यह वनस्पति का सविस्तर वर्णन किया है, वह प्रथम अहिंसा महाव्रत की रक्षा पर अत्यधिक जोर देने के उद्देश्य से किया है। ग्रन्थकार को जब किसी विषय पर अधिक जोर देना होता है, तब वह उस विषय को बार-बार पुनरावृत्ति करके कहा करता है। अतः साहित्यज्ञ सज्जन, यहाँ पुनरूक्ति दोष की आशङ्का न करें। सूत्र में जो 'फलमंथूणी' शब्द आया है, वृत्तिकार उसका अर्थ 'बदरचूर्णान्' लिखकर बेरों का चून' ऐसा अर्थ कहते हैं। परन्तु यह अर्थ उपयुक्त प्रतीत नहीं होता, क्योंकि सूत्र में बिना किसी विशेषता के केवल 'फल' शब्द आया है, उस में सभी प्रकार के फलों का ग्रहण होता है, एक बेर का ही नहीं। हाँ, बेर का ग्रहण, उदाहरण के लिए अवश्य उपयुक्त है। सूत्र का संक्षिप्त शब्दों में सार है पञ्चमाध्ययनम् ] हिन्दीभाषाटीकासहितम् / [ 189